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सियासत में बाक़ी नहीं अब  शराफत



*हमीद कानपुरी

सियासत में बाक़ी नहीं अब  शराफत।

कहाँ तक  सुधारेगी  उसको अदालत।

 

दिखावे की हरगिज़ नहीं है  इजाज़त।

दिखाते फिरो मत यहाँ तुम  नफासत।

 

करेगा  वतन की  जो  पूरी  हिफाज़त।

उसे  ही    मिलेगी   अवामी  हिमायत।

 

उन्हे  हार   मिलती  ज़माने  में  हर  सू,

समय की  समझते  नहीं जो नज़ाकत।

 

मुहब्बत  का जज़्बा  रहेगा  जो दिल में,

रहेगी नहीं फिर किसी से भी शिकायत।

 

उसी  से    निकाला   हमें  जा   रहा  है,

रही  जो  कि  सदियों  हमारी विरासत।

 

इलेक्शन फतह को किये कल  थे वादे,

नहीं अब बची कुछ  भी उनमें सदाक़त।

 

न उम्मीद उस से भी ज़्यादा रही  कुछ,

बुरे   दौर   में    है    सुतूने    सहाफत।

 

*कानपुर

 


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