✍️प्रेम बजाज
मेरे प्यार की नाकामी पे यूं ना हंसा करो ए दोस्त
मेरे ज़ख़्मों को ना सरेआम खोला करो ए दोस्त ।
बड़ी शिद्दत से चाहता हूं उस बेवफ़ा को कैसे कहूं
लगा कर नज़र मेरे प्यार को ना आंहे भरो ए दोस्त ।
क्या हुआ ग़र उसने हर बार ठुकरा दिया प्यार मेरा
दिला याद उसकी हर पल ना तड़पाते रहो ए दोस्त ।
ना कहना बेवफ़ा, उसकी तो फितरत है बेवफ़ाई की
सी कर होंठों को दर्द को सीने में छुपाओ ए दोस्त ।
ना समझा उसने "प्रेम" को कभी काबिल अपने तो क्या
उसके नज़दीक जाने की हद ना समझाओ ए दोस्त ।
*जगाधरी ( यमुनानगर )
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