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मानव जीवन की आचार संहिता -मानस के तुलसी



✍️डॉ सुशील शर्मा


तुलसी और 'श्री रामचरित मानस 'एक दूसरे के पर्याय लगते हैं। तुलसी का मानस केवल राम चरित्र का ही वर्णन नहीं हे अपितु मानव जीवन की आचार संहिता है। इसमें प्रत्येक मानव को व्यवहारिक ज्ञान की शिक्षा मिलती है। श्री रामचरित मानस सिर्फ एक धर्म ग्रन्थ मात्र नहीं है वरन मानस धर्मों की संकीर्ण सीमाओं से पर एक धर्म की अनुशंसा करता है। वो धर्म मानव धर्म है। मानस में कही भी हिन्दू धर्म या हिन्दू शब्द का उल्लेख नहीं है। ये तो सम्प्रदायक भावनाओं से ऊँचा उठ कर मानव -मानव के बीच में प्रेम सामंजस्य समानता व एकता को प्रतिष्ठित करता है। सच तो ये है की उन्नत मानवता ही तुलसी के मानस का केंद्र है।


किस अवसर पर मानव को कैसा आचरण करना चाहिए हर स्थान पर मानस में इसका उल्लेख मिलता है। माता -पिता की आज्ञा का पालन ,गिरे एवं निम्न वर्ग के लोगो के साथ प्रेम भाव दूसरों के अधिकारों को सम्मान की दृष्टि से देखना ,एक राजा का प्रजा के प्रति कर्त्तव्य ,एक पत्नी का पति के प्रति कर्त्तव्य ,बुजुर्गों की राय का मह्त्व ,शत्रु के साथ व्यवहारिक नीति। इन सब आचार संहिताओं का कालजयी  दस्तावेज श्री  रामचरित मानस है।  श्री रामचरित मानस सर्वांग सुन्दर ,उत्तम काव्य लक्षणों से युक्त,साहित्य के सभी रसों का आस्वादन करने वाला,आदर्श ग्राहस्थ जीवन आदर्श राजधर्म,आदर्श पारिवारिक जीवन,पातिव्रत्य धर्म,आदर्श भ्रातृ प्रेम के साथ सर्वोच्च भक्ति ज्ञान,त्याग वैराग्य एवं सदाचार व नैतिक शिक्षा देना वाला सभी वर्गों ,सभी धर्मो के लिए आदर्श ग्रन्थ है।साक्षात शिव ने जिस ग्रन्थ पर अपने हस्ताक्षर सत्यं शिवं सुन्दरं लिख कर किये हों उस ग्रन्थ का वर्णन संभव नहीं है


आज के सन्दर्भ में जहाँ चारों ओर हाहाकार, भ्रष्टाचार ,भीषण अशांति मची है संसार के बड़े बड़े मस्तिष्क संहार के नए साधन ढूँढ रहे हैं सिर्फ रामचरित मानस ही प्रेम के परामर्श में अग्रणी है।वस्तुतः तुलसी का मानस जो शिक्षा देता है उसमें उपदेश नहीं जीवन का सत्य होता है ,तुलसी की सारी चिंता चारित्रिक तथा सम्प्रदायक सद्भाव पूर्ण उन्नति के रास्ते पर ले जाने की ही थी। स्वार्थ ,ज्ञान ,अह्म ,ईर्षा ,बैर के अंधेरों में डूबती इस सदी के सामने आज तुलसी चिंतामणि लेकर खड़े हैं।  इसके सभी आदर्शों का अवलंबन आवश्यक है।


*गाडरवाड़ा (म. प्र.)


 


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