*संगीता श्रीवास्तव सुमन
क्यूँ ये तल्खी है क्यों अदावत है,
क्या तुम्हें मुझसे कुछ शिक़ायत है |
कम समझने की तुमको आदत है
हमको समझाने में महारत है |
जोड़कर हाथ कह दूँ स्वागत है
तेरे दिल में अगर मुहब्बत है |
पार हर बार हद के जाते हो
ये मोहब्बत नहीं, हिमाकत है |
नाम लेकर वतन का निकली हूँ
आज मेरी उसे ज़रूरत है |
ज़िद भी है और जुनून भी हम में,
दुश्मनों की समझ लो आफ़त है |
भूल जाना नहीं ये तुम हरगिज़
मौत को आज कितनी फ़ुरसत है |
वक़्त की आंधियों को समझो सुमन
आने वाली कोई क़यामत है |
*छिंदवाड़ा म.प्र.
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