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हमारी पढ़ने की आदत छूट रही है



*ललित भाटी

अब से कुछ वर्षों पहले तक हमारे अधिकांश स्तरीय पत्र, पत्रिकाएं ,एक आम पाठक को लेखक, पत्रकार बनाने का अप्रत्यक्ष जिम्मा भी निबाहते थे। उनमें पाठकों के विचारों को अभिव्यक्त करने के साथ ही लिखने के भी इतने विविध स्तम्भ खुले रहा करते थे कि, क़भी नहीं लिखने वाला एक सामान्य पाठक भी क़लम से दोस्ती कर लेता था, भले ही उसका लिखा या भेजा ,छपे या न छपे।  लेकिन वर्तमान समय में स्थिति इसके एकदम उलट है। एक बेहतर पाठक के भीतर छिपे लेखक को भी वर्षों तक पाठक ही बने रहना पड़ता है। पत्र, पत्रिकाओं में उसके लिखने, छपने के अवसर निरंतर समाप्त होते जा रहे हैं। आज के समय में विज्ञापनों की अधिकता तथा स्थापित लेखकों के नामों की लंबी कतारों ने ,एक पाठक, जो कि लेखक बन सकता है, की क़लम को प्रकाशित होने से सर्वाधिक प्रभावित किया है। अब भी यदि एक सामान्य पाठक को लिखने, प्रकाशित होने के भरपूर अवसर मिलते रहेंगे, तो निश्चित रूप से पत्र, पत्रिकाओं की बिक्री बढ़ेगी, इस कारण पाठकों के पढ़ने की आदत भी बनी रहेगी। एक विचारशील पाठक के लिए पत्र, पत्रिकाओं के माध्यम से सतत बतियाने एवं लेखन का सिलसिला जारी रहना बहुत जरूरी है, जो कि हमारी पढ़ने, लिखने की आदत को बनाए रखेगा। पत्र, पत्रिकाओं के प्रबंधन को भी यह सच सदैव स्मृति में रखना चाहिए कि, उनके पाठक जगत में खड़े रहने का मुख्य आधार एक आम पाठक ही है।

*इंदौर

 


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