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चाहा जिसे उससे मुहब्बत ना मिली









✍️आयुष गुप्ता

चाहा जिसे उससे मुहब्बत ना मिली

ताउम्र इसके बाद राहत ना मिली

 

जो इश्क़ में बस कैद एक दिन हुए तो

हमको कभी भी फिर जमानत ना मिली

 

सुरत हसीं यूँ तो मिली फिर और भी

तुझ-सी कभी भी खूबसूरत ना मिली

 

मिलता इबादत से जहां में सब, सुना

सो खूब की हमने इबादत, ना मिली

 

करता बग़ावत इश्क़ में मैं भी मगर

मुझको कभी उनसे इजाज़त ना मिली

 

*उज्जैन (म.प्र.)

 


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