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परेशानी के आंसू



*आशीष 'बल्लम'

एक आदमी बड़ा परेशान था,

हलकान था ।

बीमारी कौन सी हो गई 

इससे बेचारा अनजान था ।

डॉक्टर के सामने उसका

यह बखान था -

डॉ. साहब ,

मैं भोला-भाला कर्मचारी,

दामाद हूं ठेठ सरकारी ।

ऊपरी कमाई भी है जारी ।

ऊपर की कमाई खाता हूं तो

रात को निद्रा रूठ जाती है ।

टोंगा बंधने जैसी घबराहट से

कभी भी आंखे खुल जाती है ।

क्या आपको मेरी ये बीमारी 

समझ में आती है ?

डॉक्टर बोला -

 इस बीमारी के संबंध में

मेरा तजुर्बा बताता है ।

दादा रिश्वत खाता है और

पोता " परेशानी के आंसू "

बहाता है ।

इस लाइलाज बीमारी की 

एक ही दवा है भाई,

तुम ईमानदारी नामक दुर्लभ

चिड़िया से नाता जोड़ लो।

हराम की कमाई खाना,

रिश्वत लेना टोटल,

टोटल,टोटल छोड़ दो ।

इतना सुनते ही

हो गया पसीना-पसीना 

सरकारी कर्मचारी ।

चलने लगी उसकी 

सांस भारी-भारी ।

घबराकर बोला -

डॉक्टर साहब, 

आप तो भलतई का

इलाज बता रहे हो ।

फोकट को मेरी जान

सूखा रहे हो ।

अरे साहब, 

जिस दिन मै रिश्वत 

नहीं खाता हूं ,

उस दिन तो मेरी किस्मत

ही फूट जाती है।

बिना नींद की गोली के तो

नींद ही नहीं आती है ।

*छिन्दवाड़ा (म.प्र.)

 


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