*विनय मोहन 'खारवन'
आजकल एक शब्द नेपोटिज़्म सभी टी वी चैनेल्स पर काफी चर्चा में है। आखिर है क्या ये नेपोटिज़्म। नेपोटिज़्म मतलब भाई भतीजा वाद। हम भारतीयों के लिए कोई नया शब्द नही है। हर व्यक्ति को अपने जीवन में इस से जूझना पड़ता हैं। पढ़ लिख कर नौकरी के लिए जद्दोजहद में टैलेंट पर भतीजा वाद भारी पड़ता है।अगर आप अच्छे खिलाड़ी हैं तो स्टेट या नेशनल के लिए सिलेक्टर का रिश्तेदार बाज़ी मार ले जायेगा, आप पूरी जिंदगी नौ से पांच की नौकरी करते हुए अपने देश को अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं से बाहर होते हुए देख कर सिर्फ कुढ़ते रहोगे। ये है नेपोटिज़्म।
हाल ही में सुशांत सिंह राजपूत नेपोटिज़्म की भेंट चढ़ गए। एक होनहार व उभरता सितारा इतना अधिक मानसिक दवाब में आ गया कि उन्ही सितारों में कही खो गया, जिनको वो घर से अपनी दूरबीन से निहारा करता था। बिना गॉड फादर के बॉलीवुड में अपने टैलेंट के बूते पर टी वी के छोटे पर्दे से निकल कर बड़े पर्दे तक पहुंचना कोई बच्चों का खेल नही है। शायद इंडस्ट्री में स्थापित कलाकारों को नए टैलेंट से खुद के लिए खतरा लगना शुरू हो जाता हैं। ऐसे कितने ही उदाहरण हैं जब उभरते कलाकारों को हमेशा के लिये चुप कर दिया गया।पर इस बात को नही नकारा जा सकता कि जनता टैलेंट देखती है, किसी नामी कलाकार के बेटे या बेटी को नहीं। सन्नी देओल की एक्टिंग में दम था,जनता ने सर आंखों पर बिठाया।पर सच यह भी है ,अगर यही सन्नी देओल किसी सुशान्त राजपूत की तरह 'आउटसाइडर' होता, धर्म पुत्र न होता तो ये भी हमारे आपके साथ किसी ऑफिस में नौकरी कर रहा होता।सन्नी के पुत्र करन को जनता ने पहली ही फ़िल्म से बाहर का रास्ता दिखा दिया। सुशान्त राजपूत जैसे कितने ही संघर्षरत युवा इस नेपोटिज़्म के शिकार हैं।लेकिन इस का ये कतई मतलब नहीं कि आत्महत्या जैसा कायराना कदम उठाया जाए।इंसान को पानी से सीखना चाहिए।अगर पानी के रास्ते में पत्थर रख दें तो भी वो रुकता नहीं।अपना रास्ता दूसरी ओर से बना लेता है।आजकल के युवाओं में सहनशीलता व धैर्य की कमी है।खुशबू अपना पता खुद बता देती है।उसे ढूंढना नहीं पड़ता।
नेपोटिज़्म राजनीति की तो जड़ों तक है।यहां नेता अपने पुत्र या सगे सम्बधी को इलेक्शन में टिकट न देने पर सरकार गिराने तक कि धमकी दे डालते हैं।राजनीति में परिवार वाद, भाई भतीजावाद अक्सर नेताओं की किरकिरी भी कराता रहता है।
कुल मिला कर नेपोटिज़्म के हम सभी शिकार भी हैं और जिम्मेवार भी। टैलेंट को सम्मानित किया जाना चाहिए।नेपोटिज़्म को नकारना होगा,वरना सुशान्त राजपूत जैसे होनहारों के हौंसले टूटते रहेंगे और हम बस टी वी पर दो दिन बहस करके फिर किसी 'आउटसाइडर' के बाहर जाने की खबर भूल जाएंगे।
*जगाधरी
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