*दीपशिखा सागर
ग़मों को अपने दबा के रखना,
कमाल है या नहीं है बोलो,
ये दिल की दौलत छुपा के रखना,
कमाल है या नहीं है बोलो।
हर इक तमन्ना की रहगुज़र पर,
मुख़ालिफत की हवा के सर पर,
चराग़ ए उल्फ़त जला के रखना,
कमाल है या नहीं है बोलो।
समंदरों का मिज़ाज हो कर,
ज़मीन ए चाहत पे अश्क़ बो कर,
लबों पे खुश्की सजा के रखना,
कमाल है या नहीं है बोलो।
रिफ़ाक़तों के उसूल जैसे,
महकते ख़ुश् रंग फूल जैसे,
जिगर को पत्थर बना के रखना,
कमाल है या नहीं है बोलो।
वो गुज़रे लम्हे वो साल सारे,
दिये जो तुमने रुमाल सारे,
वो अपने दिल में तहा के रखना,
कमाल है या नहीं है बोलो।
वो रोशनी का सुराग़ बनकर,
खुली छतों का चराग़ बनकर,
खिलाफ़ ख़ुद को हवा के रखना,
कमाल है या नहीं है बोलो।
नए ज़माने के क़ासिदों से,
है बचना कैसे इन हासिदों से,
'शिखा' को सब कुछ सिखा के रखना,
कमाल है या नहीं है बोलो।
*छिंदवाड़ा मध्यप्रदेश
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