*रामगोपाल राही
लश्कर का मैदान पटा था
शत्रु फिरंगी लाशों से |
दिवस दिशा नभ धूमिल धूमिल ,
युद्ध अश्व की टापों से ||
जख्मी रानी देख रुक गया ,
समय भी ठहरा ठहरा था |
रानी के संग खुद भी घायल ,
आहत हो गया घहरा था ||
शत्रु पड़े -पीछे रानी के ,
समझो कुछ ही दूरी थी |
भारत के दुर्भाग्य काल की ,
नियति यह मजबूरी थी ||
तत्क्षण सोचा रानी ने तन ,
नहीं फिरंगी हाथ लगे |
प्राणोंत्सर्ग भले कर डालूँ ,
पर न कलंकित घात लगे ||
हाथ निराशा शत्रु जिंदा ,
पकड़ सके ना रानी को |
तेजस्वी भारत की नारी ,
देश भक्त बलिदानी को ||
वक्त थमा था -पवन ठगा सा,
-ठिठक दिशाएँ रही खड़ी |
आसमान उठ बैठा बोला ,
क्यों आयी ओ काल घड़ी || ?
संध्या किरणों से सूरज ने ,
कफन उड़ाया रानी को |
अमर रहे बलिदान तुम्हारा ,
बोला वीर भवानी को ||
स्वतंत्रता - शंखनाद कर ,
मिट गई वीर भवानी थी |
शंख फूँक के गई जगा वो -
- झाँसी वाली रानी थी ||
तिथि 18 जून दुखद दिन ,
उसके बलि हो जाने का |
शोक में सबके -आंखों में ,
आँसू भर भर आने का ||
लश्कर केम्पू मैदान में ,
चिता जली थी रानी की |
फैली चर्चा चहुँ दिशा में ,
अमित कहानी रानी की ||
मरी मिटी रानी तो लेकिन ,
देकर यह संदेश गई |
मातृभूमि व देश बढ़कर ,
होता व्यक्ति विशेष नहीं ||
कभी-कभी ही वीर नारियाँ ,
मुश्किल से हो पाती है |
देश भक्ति में जीवन देकर
अपने प्राण लुटाती है ||
*पो. लाखेरी ,जिला बूंदी (राज)
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