म.प्र. साहित्य अकादमी भोपाल द्वारा नारदमुनि पुरस्कार से अलंकृत

शालीन व्यंग्य के अग्रज व्यंग्यकार गोपाल चतुर्वेदी

स्मृति शेष : व्यंग्यकार गोपाल चतुर्वेदी
देश के जाने माने प्रतिष्ठित व्यंग्यकार श्री गोपाल चतुर्वेदी जी का 84 वर्ष की आयु में 24 जुलाई की रात को लखनऊ में देहावसान हो गया। 15 अगस्त 1942 को जन्मे श्री गोपाल चतुर्वेदी का नाम जाना पहचाना होकर समकालीन व्यंग्य में बड़े ही आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है। देश के वरिष्ठ व्यंग्यकार का नाम जब लेना हो तो सबके सामने एक ही नाम होता है- गोपाल चतुर्वेदी। करीब बीस से अधिक प्रकाशित व्यंग्य संग्रह उनके खाते में हैं। काव्य संग्रह भी गोपाल चतुर्वेदी के आये हैं। उनके प्रसिद्ध व्यंग्य संकलनों में धाँधलेश्वर , राम झरोखे बैठ के , अफसर की मौत , सत्तापुर के नकटे , भारत और भैंस , कुर्सीपुर का कबीर , चुनिन्दा व्यंग्य , संकलित व्यंग्य , खरी खरी , जुगाडपुर के जुगाडू , पत्थर फेंको सुखी रहो , फ़ार्म हाउस के लोग आदि सम्मिलित रहे। गोपाल चतुर्वेदी जी को हिंदी अकादमी दिल्ली द्वारा साहित्यकार सम्मान सहित अनेकों प्रतिष्ठित साहित्य सम्मान देश –विदेश के मिले हैं। भारतीय पुलिस सेवा में चयन के बाद रेल,गृह, नागरिक उड्डयन आदि मंत्रालयों में उच्च पदों पर रहने और सेवानिवृति के बाद आज भी व्यंग्य लेखन में सक्रिय हैं। गोपाल चतुर्वेदी के व्यंग्य की सबसे बड़ी खासियत है कि वह कभी किसी ऐसे समकालीन, तात्कालिक विषय या घटना पर व्यंग्य नहीं लिखते जिसकी आयु क्षणभंगुर होकर भूलने लायक होती है। यदि कुछ व्यंग्य लिखे भी हैं तो उनके शिल्प ऐसे हैं कि व्यंग्य आज भी तरोताजा ही लगते हैं।

वर्तमान में व्यंग्य लेखन बहुतायत में हो रहा है और कई व्यंग्यकार सामने आ रहे हैं मगर वरिष्ठ व्यंग्यकारों की नजर में वे व्यंग्य के नाम पर कूड़ा करकट ही फैला रहे हैं और ऐसे में व्यंग्य के शिल्प,कथ्य,भाषा से अनजान व्यंग्यकारों की भरमार के बीच गोपाल चतुर्वेदी जी के व्यंग्य पढ़ना ,रेगिस्तान में मीठे झरने के स्वाद से गुजरना जैसा लगता है। आज व्यंग्य में जितना वैविध्य है उतना पहले कभी नहीं रहा मगर अधिकाँश व्यंग्यकार व्यंग्य के नाम पर धार्मिक और नैतिक प्रवचनकार की भूमिका अदा कर रहे हैं। गोपाल चतुर्वेदी व्यंग्य के सुनहरे दौर की नींव के शीर्ष व्यंग्यकार हैं और व्यंग्य क्या होता है ,कैसे लिखा जाता है ,उन्हें पढकर जाना जा सकता है इसलिए आपके व्यंग्य इस दृष्टि से मुकम्मिल व्यंग्य हैं कि वे अपने विषय में पूरा विस्तार लिए होते हैं और व्यंग्य केवल लिखने के लिए नहीं लिखते बल्कि व्यंग्य करने के लिए ,व्यंग्य लिखते हैं जिसकी मार हमेशा बनी रहती है।

गोपाल चतुर्वेदी जी ने भारतीय प्रशासनिक सेवा में विभिन्न पदों और विभिन्न स्थानों पर रहते हुए अपने आसपास की शासकीय सेवा की विसंगतियों , अधिकारी और बाबुओं की कार्यप्रणाली को सूक्ष्मता से अनुभव किया है और व्यंग्य के लिए मुफीद विषयों को चुनकर श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएँ लिखी हैं। अंग्रेजी में स्नातकोत्तर होने के कारण आपके व्यंग्य में अंग्रेजी लेखकों और विभिन्न अंग्रेज व्यक्तित्वों के विवरण एक अलग ही रोचकता लिए होते हैं जो आपकी अध्ययनशीलता को भी प्रदर्शित करते हैं। आज व्यंग्य की सर्वाधिक जरुरत है क्योंकि बकौल गोपाल चतुर्वेदी जी आजादी के ईतने वर्षों बाद भी भारतीय सियासत और वजारत ,स्वतंत्रता संग्राम के बहुप्रचारित आदर्शों से कोसों दूर है और व्यंग्य ही समाज की इन विसंगतियों,विरोधाभासों और बकवासों से पाठक को परिचित करा सकता है। व्यंग्य समकालीन ,सामाजिक,सांस्कृतिक ,राजनीतिक ,तथा मानवीय असंगतियों की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम माना गया है और गोपाल चतुर्वेदी ने अपने व्यंग्य लेखन से अपना सामाजिक दायित्य बखूबी अदा किया है।

देश की रग रग में भ्रष्टाचार समाया हुआ है और लाख जतन के बाद भी ईमानदार सरकारें भी भ्रष्टाचार का बाल बांका नहीं कर सकीं हैं और यह तेजी से व्यवहार संस्कृति में परिणित हो रहा है ऐसे में गोपाल जी के व्यंग्य ‘भारत में जीव्स ‘ की ये पंक्तियाँ सूत्र वाक्य सी लगती हैं – ‘ इंडिया में नियम कायदे के हर ताली की एक चाबी घूस है। हर छोटे बड़े की यहाँ कीमत है।’ नेताओं का नकटापन आम बात है और विवाद होने पर अपनी कही बात से पलट जाना फैशन हो गया है। मेरा कहने का यह मतलब नहीं था ,मुझे गलत कोट किया गया है आदि कह कर बचना चाहते हैं। इसीलिये व्यंग्य ‘आज के नेता की आदर्श बनावट ‘ में गोपाल चतुर्वेदी लिखते हैं –‘आम आदमी के लिए नाक का महत्त्व है। नेता के लिए नहीं। उसके लिए पेट प्रासंगिक है।’ नेता के लिए पेट प्रासंगिक है कहकर एक दो शब्दों में ही राजनेताओं के द्वारा किये जा रहे घोटालों का बखान कर दिया गया है। गोपाल जी का एक व्यंग्य है –‘ दादा का अहिंसा उसूल ‘ में ‘आम आदमी को हाथ जोड़ने के लिए दिए गए हैं ,नेता अभिनेता जैसों को जेब भरने के लिए ,और पुलिसवालों को डंडा चलाने के लिए जो प्रभुदत्त हाथों का उचित इस्तेमाल नहीं करेगा वह उपरवाले की तौहीन करेगा। ‘ आमजन की बेबसी और भ्रष्ट व्यवस्था पर तीखा व्यंग्य है। इसी व्यंग्य में ‘हमारे मुल्क में सब सड़क पर होता है। बड़े छोटों के पारिवारिक झगडे ,नेताओं की आपसी कलह ,कवियों का कविता –पाठ ,साधु का प्रवचन ,आमजन का लघु-दीर्घ शंका समाधान सब सार्वजनिक प्रदर्शन और मनोरंजन की चीजें हैं।’ देश की सड़कों पर हो रहे तमाशे को इंगित किया गया है।

साहित्य में पुरस्कारों को लेकर जोड़तोड़ ,राजनीति ,उठापटक चलती ही रहती है। इसलिए साहित्यिक पुरस्कारों की गरिमा आजकल घट रही है। गोपाल चतुर्वेदी का साहित्यिक सम्मानों और पुरस्कारों पर एक व्यंग्य है ‘ पेट और पुरस्कार ‘ पुरस्कार की आस में एक साहित्यकार की पीड़ा और बेबसी इस व्यंग्य में हैं और पुरस्कारों की राजनीति पर यह एक श्रेष्ठ व्यंग्य है जिसमे सस्पेंस बना रहता है कि क्या होगा, व्यंग्य की पंक्तियाँ देखिये - ‘बुध्धिजीवियों की दिमागी कसरत से हम पूरी तरह भ्रमित हैं बस इतना जानते हैं कि पेट और पुरस्कार में कोई गहरा संबंध है। अगर मिला तो पेट हलके फुल्के पिराता है कि पहले क्यों नहीं मिला और यदि नहीं मिला तो असहनीय पीड़ा होती है कि क्यों नहीं मिला।'

व्यंग्य ‘ अपने अपने कूड़ेदान ‘ में साफ़ सफाई के नाम पर हाथ की सफाई का चित्रण है कि सबको चंदे के धंधे से मतलब है। इसी व्यंग्य में साहित्यकार की पत्नी अपने पति की अतुकांत कविताओं को समय की बरबादी मानती है और कहती है कि ‘ असली घी सी कविता वह थी जिसे हारमोनियम लेकर गाया जा सके। उसके बाद से साहित्य का डालडा युग चल रहा है ’ व्यंग्यकार ने यह पंक्तियाँ लिखकर कवि सम्मलेन के मंचों से लेकर साहित्यिक बिरादरी की खबर ले डाली है।

इसमें संदेह नहीं कि आरक्षण पर कुछ बोलना ,कहना या कोई भी पक्ष रखना खतरे से खाली नहीं है क्योंकि आजादी के इतने वर्षों बाद भी सरकारें उनका शैक्षिक और आर्थिक स्तर ईतना नहीं उठा पाई कि वे भी समाज की मुख्यधारा के साथ कदम से कदम मिलाकर चल सकें। व्यंग्यकार ने प्रतीकों में वह सब कुछ कह दिया जो कहने पर आपको कटघरे में खड़ा किया जा सकता है। व्यंग्यकार के शब्दों में –‘आरक्षण का आकर्षण आज भी भारतीय राजनीति का वह मीठा ,मधुर ,व चुसुआ आम है जिसे हर दल गपागप चूसना चाहता है और सबके सामने मानने से कतराता है’।

किसी लेखक की पुस्तक के लोकार्पण –विमोचन प्रसंग में प्रायोजित अतिथियों /समीक्षकों द्वारा ईतने कसीदे काडे जाते हैं कि लेखक को श्रेष्ठ साहित्यकार मानना ही पड़ता है। व्यंग्यकार के अनुसार ‘अब तो विमोचन के भाषण और उसके बाद के चायपान तक अधिकतर किताबें कालजयी की श्रेणी में आती हैं और उसके बाद क्षणभंगुर हो जाती हैं ‘।

तमाम कोशिशों के बावजूद भी बच्चों के स्कूल के बस्ते का बोझ कम नहीं हो पा रहा है। बच्चों को कोचिंग , परिणाम में उच्च प्रतिशत का इतना बोझ रहता है कि उन्हें खेलने का भी अवसर नहीं मिलता ऐसे में व्यंग्यकार का यह कहना ‘ स्कूल के एवरेस्ट पर रोज चढ़ते उतरते हैं। घर आकर ढेर सारे होमवर्क के मलबे के नीचे दबे रहते हैं ' संवेदी है।

ऐसे ही कुछ और व्यंग्यों की पंक्तियां देखिये, ये पंक्तियाँ अपने आप में सम्पूर्ण व्यंग्य हैं और यदि इनकी विस्तृत विवेचना की जाए तो काफी कुछ लिखा जा सकता है। एक पंक्ति ही सब कुछ बखान कर देती है -

‘ टांग खींचना भारत का सबसे प्रिय ‘टाइम पास’ है ‘

‘तीर्थस्थल पर पंडा और पुलिस केस में डंडा होना ही होना है ‘

‘दहेज़ पर रोक लगी तो पुलिसवालों की बन आई ‘

‘मौत ,सौत और सियासत का कोई भरोसा नहीं है ‘

‘निष्ठा के सामने योग्यता की क्या बिसात है ‘

‘सत्ताधारी दल का छुटभैया तक छुट्टा सांड होता है। वह जहाँ भी चाहे ,मुंह मारे ,उसका कोई क्या बिगाड़ लेगा।’

‘तिकड़म,तरकीब,और तकदीर से पैसा कमाया जाता है’

‘संपर्क और खिलाना पिलाना अच्छी मार्केटिंग का विश्वव्यापी उसूल है’

‘सबकी मंजिल एक है। कोई पैसा कमाकर प्रचार पता है ,कोई प्रचार पाकर पैसा कमाता है ‘

‘सरकार काहिली ,करप्शन ,कपट ,सोर्स ,कनेक्शन और कलेक्शन की खान है’

गोपाल चतुर्वेदी जी सरकारी सेवा में उच्च पदों पर रहे मगर जब व्यंग्य लेखन करते हैं तो व्यंग्य में स्वयं , बाबू या कर्मचारी के पात्र में हाजिर होकर संवाद करते हैं। यह उनके व्यक्तित्व की भी विशेषता है कि वे शीर्ष व्यंग्यकार होते हुए भी बातचीत में हंसमुख ,सहज और सरल बने रहते हैं। व्यंग्य रचना का कथ्य और प्रभाव व्यंग्यकार को लोकप्रिय बनाता है क्योंकि ऐसी व्यंग्य रचना जो हमेशा पढने पर ताजा और रुचिकर लगे व्यंग्य को सार्थकता प्रदान करती है। स्पष्ट है कि यहाँ व्यंग्य के शाश्वत होने की बात की जा रही है और गोपाल चतुर्वेदी के व्यंग्य के विषय जनजीवन और समाज से इस कदर जुड़े हैं कि पढने पर हमेशा नयेपन का आभास कराते हैं। गोपाल जी की व्यंग्य रचनाओं का परिवेश व्यापकता से भरा हुआ है और विसंगतियों पर आपके प्रहार देखते ही बनते हैं। गोपाल चतुर्वेदी के व्यंग्य लेखन की भाषा शैली सामान्य भाषा में विचारों की लयात्मकता बनाये रखती है और पाठक के दिल में उतरती है। गोपाल चतुर्वेदी की व्यंग्य भाषा में मौजूद अर्थ की परतें चीजों के आरपार देखने में समर्थ हैं। बौद्धिकता और पठनीयता से व्यंग्य समृद्ध होता है और गोपाल जी व्यंग्यों में यही बौद्धिकता दार्शनिक बनकर सामने आती है। कहा जाता है कि व्यंग्यकार अपने समय की शोषित – भ्रमित जनता के दर्द का अभीक उद्घोषक होता है और गोपाल चतुर्वेदी ने अपने व्यंग्यों में ,इसी सत्य को संप्रेषित किया है। शालीनता की सीमा में रहकर व्यंग्य लेखन करना कठिन कार्य होता है और गोपाल जी इसीलिये शालीन व्यंग्य के अग्रज व्यंग्यकार हैं। वर्ष 2011 में उज्जैन में दो दिवसीय राष्ट्र्रीय व्यंग्य सम्मेलन का विशाल आयोजन डॉ. शिव शर्मा ने श्री गोपाल चतुर्वेदी के मुख्य आतिथ्य में , गोपाल जी के उत्तर प्रदेश हिन्दी अकादमी के अध्यक्ष रहते हुए करवाया था जिसकी यादें आज भी जहन में हैं। उनका निधन व्यंग्य जगत की अपूरणीय क्षति है। उन्हें विनम्र नमन।
डॉ. हरीशकुमार सिंह
(लेखक वरिष्ठ व्यंग्यकार एवं स्तम्भकार है)

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