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गोया कि सरकार हुए



*डॉ रमेश कटारिया पारस

बेबस और लाचार हुए  

गोया कि सरकार हुए 

 

छुट्टी रोज़ मनाते हैं वो 

जैसे कि इतवार हुए  

 

तन मन  दोंनो ज़ख़्मी हो गये 

इतनें अत्याचार हुए 

 

पूछा नहीं क़बीले नें भी 

ऐसे भी सरदार हुए 

 

पीठ दिखा कर भाग आये जो 

कुछ ऐसे दिलदार हुए 

 

गाँठ की पूँजी गवा के बैठे 

ये कैसे व्यापार हुए 

 

थोड़ी देर में बासी हो गये 

यानि कि अख़बार हुए 

 

नेता कहां बचे पारस जी 

चमचों का दरबार हुए 

 

महल गाँव ग्वालियर

 


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