Subscribe Us

बादल सा मैं घिर जाता हूँ



*अलका 'सोनी'

बादल सा मैं घिर जाता हूं 

फिर बरसे बिन रह जाता हूं

 

बीते लम्हों की यादों को 

रख सिरहाने सो जाता हूं 

 

तेरे प्रश्नों के उत्तर लेने 

अपने ही अंदर जाता हूं

 

मुश्किल लगता है अब जीना

देख कर बाहर डर जाता हूं 

 

निकले कोई घर से कैसे 

सूनी राहों से डर जाता हूं 

 

कैसी यह बीमारी फैली 

देने कहीं दवा जाता हूं 

 

अपनों की चिंता है मुझको 

वापस लौट कर घर जाता हूं 

 

औरों को कम पड़ ना जाए 

अपनी रोटी दे जाता हूं।

*बर्नपुर, पश्चिम बंगाल

 


साहित्य, कला, संस्कृति और समाज से जुड़ी लेख/रचनाएँ/समाचार अब नये वेब पोर्टल  शाश्वत सृजन पर देखेhttp://shashwatsrijan.comयूटूयुब चैनल देखें और सब्सक्राइब करे- https://www.youtube.com/channel/UCpRyX9VM7WEY39QytlBjZiw 



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ