*डॉ.विभाषा मिश्र
हर युग में हर समाज में
आख़िर क्यों देनी पड़ती है
कुछ अबलाओं को अग्नि परीक्षा
हर जगह हर माहौल में
वही एक है जो
सामंजस्य बिठाकर चलती हैं
उसे भी पूरा हक़ है
खुलकर जीने का
खुली हवा में सांस लेने का
वह कोई बेजान वस्तु तो नहीं
जिसे जैसा चाहा उपयोग
करके अपने आप से
दूर हटा दिया
वो तो कोमल हृदय की
गुड़िया है उसे जैसा रखो
वह ख़ुशी से रह लेगी
बस उसका तिरस्कार न करना
हर जगह अपमान न करना
फिर देखो,
समय आने पर वह भी
तुम्हें माँ,बहन,सखी,पत्नी
सभी रूपों में नज़र आएगी
क़द्र कर लो उस इन्सान की
जो जननी है पूरे संसार की
कितनी अग्नि की ज्वालाओं
में उसको हर बार,हर जगह
परीक्षा से गुज़रना होगा
अब बहुत हुआ उसके भीतर भी
एक नारीत्व अभी तक जीवित है
जो कभी चंडी तो कभी काली
तो कभी दुर्गा भी बन सकती है।
* रायपुर(छत्तीसगढ़)
हर युग में हर समाज में
आख़िर क्यों देनी पड़ती है
कुछ अबलाओं को अग्नि परीक्षा
हर जगह हर माहौल में
वही एक है जो
सामंजस्य बिठाकर चलती हैं
उसे भी पूरा हक़ है
खुलकर जीने का
खुली हवा में सांस लेने का
वह कोई बेजान वस्तु तो नहीं
जिसे जैसा चाहा उपयोग
करके अपने आप से
दूर हटा दिया
वो तो कोमल हृदय की
गुड़िया है उसे जैसा रखो
वह ख़ुशी से रह लेगी
बस उसका तिरस्कार न करना
हर जगह अपमान न करना
फिर देखो,
समय आने पर वह भी
तुम्हें माँ,बहन,सखी,पत्नी
सभी रूपों में नज़र आएगी
क़द्र कर लो उस इन्सान की
जो जननी है पूरे संसार की
कितनी अग्नि की ज्वालाओं
में उसको हर बार,हर जगह
परीक्षा से गुज़रना होगा
अब बहुत हुआ उसके भीतर भी
एक नारीत्व अभी तक जीवित है
जो कभी चंडी तो कभी काली
तो कभी दुर्गा भी बन सकती है।
* रायपुर(छत्तीसगढ़)
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