*सुरजीत मान जलईया सिंह
उस को छूकर भी तो नहीं छुआ मैंने।
इसी प्यास में दरिया नहीं छुआ मैंने।
जलता हुआ बदन भी छूकर देखा है।
सचमुच वैसा कुछ भी नहीं छुआ मैंने।
सन्नाटा सा उतर गया है भीतर तक।
अपने बाहर क्या क्या नहीं छुआ मैंने?
जुदा न उसकी ख़ुशबू मुझसे हो जाए।
उसको छूकर खुद को नहीं छुआ मैंने।
मेरे अन्दर अब तक उसकी हलचल है।
कई वर्षेो से जिसको नहीं छुआ मैंने।
*दुलियाजान, असम
साहित्य, कला, संस्कृति और समाज से जुड़ी लेख/रचनाएँ/समाचार अब नये वेब पोर्टल शाश्वत सृजन पर देखे- http://shashwatsrijan.comयूटूयुब चैनल देखें और सब्सक्राइब करे- https://www.youtube.com/channel/UCpRyX9VM7WEY39QytlBjZiw
0 टिप्पणियाँ