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जेठ की निर्जला नदी !



      

*अशोक 'आनन'

 

भील - कन्या - सी 

अब कांटा हुई -

जेठ की निर्जला नदी ।

 

         सड़क - गली 

         अपाहिज़ - सा लेटा -

         बूढ़ा    सन्नाटा ।

         पेड़ों   को 

         इस साल भी हुआ -

         छांव का घाटा ।

धूल - धुओं में 

अब मलीन हुई -

यह शुभ्रा सदी ।

 

           हवा भी थककर

           अब दुबक गई -

           पेड़ों  के  पीछे ।

           उमस पर लेटी है

           जेठ -  दुपहर -

           आंखों को मींचें ।

अंगारों - सी दहकती 

धूप की गठरी -

सिर पर लदी ।

 

*अशोक 'आनन',मक्सी,जिला - शाजापुर ( म.प्र.)

 


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