*पूजा झा
मानव कब तक हारोगे तुम
ईर्ष्या द्वेष के वारों से,
क्यों घबराते हो तुम इतना
विपरीत हालात के वारों से।
सब सहकर अब तुमको
जीवन पथ पर चलना होगा।
हे! मानव रूपी रत्न तुम्हें
फिर से आज निखरना होगा।।
परशुराम भी नर थे तुमसे,
भर हुंकार वो वंदन करके।
मृत्युलोक की इस धारा को
पावन फिर से करना होगा।
हे! मानव रूपी रत्न तुम्हें
फिर से आज निखरना होगा।।
नर पिशाच बन बैठे नर तो,
उजड़ गए हों बसे शहर तो।
कर कोशिश बसाने की फिर,
उनको याद दिलाने की फिर।
नर में भी नारायण होते
ये एहसास दिलाना होगा।
हे! मानव रूपी रत्न तुम्हें
फिर से आज निखरना होगा।।
*पूजा झा,भागलपुर(बिहार)
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