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'मैं' से माँ बन गई




*डॉ. अनिता जैन 'विपुला'

 

एक स्त्री...

'मैं' ही 'मैं' होती है

जब जन्मती है

बढ़ती है और बड़ी होती है 

और एक दिन 

विवाह संस्कार होता है तो

उसका 'मैं' घुलने लगता है

प्रेम में पिघलने लगता है

पर जिस दिन उसे

मातृत्व का अहसास होता है

उस दिन...

'मैं' से 'माँ' बन जाती वह स्त्री

निज जीवन को भूल 

सन्तति के पालन में लग जाती

मैं भी 'मैं' से 'माँ' बन गई

इक नन्हीं-सी परी की

जो कहीं कभी 

सपनों में बसती 

वही आज इस गोद में 

किलकती रहती

उस निःशब्द अनुभूति से

खिल उठा मन का आँगन 

जैसे महकने लगा सूनापन

'ममकार' 'ममत्व' में बदल जाता

यह दिल भी बच्ची बन

फिर से ज्यूँ मचल मचल जाता

जीवन में खुशियों की

प्यारी बहार आ गई 

मेरी बेटी बनकर मेरा 

सम्पूर्ण संसार आ गई !

 

*डॉ. अनिता जैन 'विपुला',उदयपुर, राजस्थान 



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