*डॉ.नीलम खरे
मां तुझको मैं नमन कर रही ,तेरा नित ही वंदन है ।
तुझसे ही तो हर संतति के,माथे पर नव चंदन है।।
तू है सागर जैसी गहरी,
नमन करे तुझको पर्वत भी झुक
तेरी महिमा को गाते हैं
चंदा-सूरज भी तो रुक
मां तुझको प्रणाम कर रही,तू तो मेरा जीवन है ।
तुझसे ही तो हर संतति के,माथे पर नव चंदन है।।
हरियाली तू,खुशहाली तू,
लहरों का विस्तार है
आंचल में ब्रम्हांड समाहित,
महक रहा संसार है
तेरी जय-जयकार सदा ही,तुझसे मेरा उपवन है ।
तुझसे ही तो हर संतति के,माथे पर नव चंदन है।।
तू ही जीजाबाई है
ब्रम्हा तुझ में,विष्णु तुझ में,
तुझ में तो प्रभुताई है
स्तुति,पूजन और आरती,तू तो भजन-कीर्तन है ।
*डॉ.नीलम खरे,मंडला(म.प्र.)
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