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लॉकडाउन में प्रकृति के सानिध्य में बढ़ा मनोबल




कोरोना वायरस के संसर्ग से बचने के लिए सरकार ने लॉक डाउन घोषित कर दिया। लॉक डाउन के चलते जैसे सब कुछ थम सा गया था।  बदलती दिनचर्या  से ताल-मेल बिठाना मुश्किल हो रहा था। 'वर्क फ्रॉम होम' और 'वर्क फॉर होम ' दोनों का निर्वहन बड़े संयम से करना पड़ रहा था। भय और अनिश्चितता दोनों के बीच जीवन जैसे  झूल रहा था। लॉकडॉउन में कई समस्याओं के बावजूद बहुत कुछ बदलाव मेरे जीवन में आ गया है। खुद से खुद का परिचय, आत्मा से संवाद साधने का प्रयास और ईश्वर पर बढ़ती आस्था। लगता है प्रकृति के भी अपने नियम हैं। अब सुबह की चिडियों की चहचहाट सुनाई देने लगी है। सुबह की सुकून भरी चाय एक नई स्फूर्ति देती है जो कभी केवल स्वप्न मात्र रह गई थी। प्रकृति से खुद को जुड़ता हुआ पाती हूं। जो फूल गिरे हुए लोगों के पावों से कुचले जाते थे अब धरती पर सुंदर सी मुस्कुराहट लिए मन लुभाते है l खिलखिलाते हुए सूर्य की सुनहरी किरणें देखती हूं ।शीतल चांदनी बिखेरता हुआ चांद टकटकी लगा कर देखना एक सुकून देता है। फूलों का सौंदर्य जो पहले शायद इतनी गहराई से नहीं देखती थी अब नजर आने लगी सभी मुश्किलों के बावजूद लॉकफाउन मेरे जीवन को एक नई दिशा दे रहा है।  भय और अनिश्चितता के बीच  प्रकृति से एक रेशम- बंध जुड़ गया। प्रकृति ने हमेशा सृजन ही किया है। पर मनुष्य ने प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर अपने विजयी होने का दावा ही किया है। लॉक डाउन हमारे लिए एक सबक है, प्रकृति के साथ खिलवाड़ ना करे बल्कि उसका जतन करें। धरा को फिर से एक नया रूप दे। इसी में सभी का कल्याण है। प्रकृति ने स्नेह दिया ,सृजन किया, जीवन दिया वहीं हम सभी को प्रकृति को लौटाना है ।

*उज्ज्वला  साखलकर, पुणे(महाराष्ट्र)

 


इस विशेष कॉलम पर और विचार पढ़ने के लिए देखे- लॉकडाउन से सीख 


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