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लोग पागल थे जिनकी अदा देख कर



*हमीद कानपुरी

 

लोग  पागल  थे  जिनकी अदा देख कर।

घर  के  अन्दर  छुपे‌  वो  वबा  देख कर।

 

अनमना  कल हुआ  अनमना  देख कर।

ग़मज़दा   आज  है  ग़मज़दा   देख कर।

 

सैकड़ों   मील   पैदल  चली   मुफलिसी,

दंग  सब   रह  गये   हौसला   देख कर।

 

जब  से  फैली  वबा  कम  है  आलूदगी,

खुश बहुत आजदिल है फज़ा देख कर।

 

आँधियाँ पूंछकर जिससेचलती थीं कल,

चल रहा  आजकल  वो  हवा  देखकर।

 

रोक पाया  न  जिसको  कोई  भी  कहीं,

रुक  गया  है  वही   मयकदा  देख कर।

 

*हमीद कानपुरी

 


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