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चिकित्सा एवं शिक्षा- निजी बनाम सरकारी









*कैलाश गर्ग

 

कोरोना जैसी वैश्विक महामारी ने सरकार के निजीकरण के प्रयासों को आईना दिखा दिया हैं । कुछ दिन पहले भारत की वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया था कि आत्मनिर्भर भारत अभियान को सफल बनाने के लिये सार्वजनिक उद्यम नीति लाई जाएगी । इस नीति के तहत लगभग सभी क्षेत्रों को प्राइवेट सेक्टर के लिये खोला जाएगा । सामरिक क्षेत्र को छोड़ दे तो शेष सभी क्षेत्रों के लिये निजीकरण की राह खुलने वाली हैं । अब सवाल यह उठता हैं कि क्या सरकारी उपक्रम ढंग से काम नही कर रहे हैं ? यदि आप भी ऐसा सोच रहे हो तो ये गलत हैं ,क्योंकि सरकारी उपक्रम तो अच्छा कार्य कर रहे हैं लेकिन उन्हें सही तरीके से प्रौत्साहन नही मिल रहा हैं । बात चिकित्सा क्षेत्र की करें तो कल तक देश भर में समाचार-पत्रों, रेडियो, टीवी एवं सोशल मीडिया के माध्यम से बेहतर चिकित्सा सेवाओं के विज्ञापनों के सहारे अपनी ब्राण्ड मार्केटिंग करने वाले तमाम बड़े निजी चिकित्सालयों को पछाड़कर आज सरकारी अस्पताल कोविड-19 में अग्रणी भूमिका में सेवाएं दे रहे हैं । कुछ जगह तो निजी चिकित्सालयों ने कोरोना संक्रमण के डर से क्वारेंटाइन सेंटर हेतु कक्ष उपलब्ध नही करवाएं, ईलाज तो दूर की बात हैं । मेडिकल क्षेत्र एक आपातकालीन व्यवस्थाओं में आता हैं, इस कारण सामान्य उपचार फ़िलहाल निजी अस्पतालों में भी हो रहा हैं ।

 

बात शिक्षा क्षेत्र की करें तो आम लोगों में यह धारणा कर गई थी कि सरकारी विद्यालयों में पढाई नही होती । अब यह धारणा भी बदल गई है । विगत कुछ वर्षों से सरकार द्वारा प्रशासनिक स्तरों पर कुशल नेतृत्व करके इन सभी विषयों पर मंथन किया गया कि आखिर लोगों का सरकारी विद्यालयों के प्रति रुझान कम क्यों हो रहा हैं ? तब सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में नवाचार करके विद्यालय प्रबंधन समिति, शिक्षक-अभिभावक बैठक, मातृ-शिक्षक बैठक, पूर्व विद्यार्थी परिषद, सार्वजनिक स्थलों पर शनिवारीय बालसभा, विविध पर्वों एवं समारोहों में आमजन के साथ साथ जनप्रतिनिधियों की भागीदारी, समय- समय पर बच्चों के शैक्षिक स्तर एवं परीक्षा परिणाम से अभिभावकों को अवगत करवाना, शिक्षकों को गैर शैक्षणिक कार्यो से राहत देकर एवं विविध सरकारी योजनाओं के माध्यम से प्रौत्साहन देकर आमजन का विश्वास फिर से जीतने में कामयाब रही हैं ।

 

गत वर्षो के परीक्षा परिणामों में सरकारी विद्यालयों के प्रदर्शन ने इस विश्वास को और पुख्ता कर दिया कि सरकारी विद्यालय गुणात्मक दृष्टि से कम नही हैं । कम भौतिक एवं मानवीय संसाधनों के बावजूद, शिक्षकों के मूल कार्य शिक्षण के अतिरिक्त विविध प्रकार की सरकारी सूचनाओं के आदान-प्रदान, बीएलओ, जनगणना, चुनाव, एमडीएम प्रभारी एवं विविध गैर शैक्षणिक कार्यों के बावजूद भी शिक्षक अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दे रहे हैं । लॉकडाउन के चौथे चरण की घोषणा के बावजूद अब तक स्कूल, कॉलेज आदि खोलने को लेकर अनिश्चितता बनी हुई हैं । सरकार ने भी इन अनिश्चितताओं को भांपते हुए डिजिटल ई लर्निंग को बढ़ावा दिया हैं । छात्रों को मोबाईल ,टीवी एवं आकाशवाणी के माध्यम से घर बैठे शिक्षण सामग्री उपलब्ध करवाकर शिक्षण कार्य करवाया जा रहा हैं ।

 

एक और जहाँ शिक्षक कोरोना कर्मवीर के रूप में घर-घर सर्वे करने, क्वारेंटाइन सेंटर , चैक पोस्ट, कंट्रोल रूम, राशन वितरण इत्यादि जगह अपनी ड्यूटी दे रहा हैं, वहीं ई-लर्निंग के माध्यम से छात्रों को पढाई भी करवा रहे है । कुछ निजी विद्यालय भी इसी कड़ी में प्रयासरत हैं । लेकिन एक सरकारी अपील जो मोदीजी ने निजी संस्थानों से की थी कि किसी भी कार्मिक का वेतन न काटा जाए । ऐसा करने से निजी क्षेत्र में कार्यरत मध्यम वर्ग को लॉकडाउन के इस दौर में आर्थिक राहत मिली हैं । लेकिन निजी विद्यालयों के लिये यह दुविधा हो गई हैं कि शिक्षकों को तनख्वाह कैसे दी जाए ? क्योंकि शिक्षण कार्य के अभाव में अभिभावक भी फीस जमा करने में आनाकानी कर रहे है । कुछ निजी विद्यालयों ने तो मौखिक रूप से परिवहन की राशि भी जमा करने का दबाव बना रहे हैं । ऐसा कतई उचित नही हैं । हाँ, शिक्षण शुल्क की माँग जरूर की जा सकती है क्योंकि उन्हें शिक्षकों को भी तनख्वाह देनी पड़ेगी ।

 

लेकिन इसकी आड़ में परिजनों पर बच्चों के नाम पृथक करने या दाखिला न देने की धमकियां देना स्वीकार्य नही होगा, ऐसा सरकार भी कह चुकी है । वैश्विक जगत में व्याप्त आर्थिक संकट के कारण कई निजी विद्यालयों ने दरियादिली दिखाते हुए लॉकडाउन अवधि की सम्पूर्ण फीस माफ़ करने की घोषणा से बेहतरीन मिशाल कायम की हैं । इनका अनुसरण करके निजी विद्यालयों की प्रबन्धन समिति चाहे तो अभिभावकों को फीस माफ़ी का तोहफ़ा देकर राहत प्रदान की जा सकती हैं । यदि ऐसा होता है तो इस पहल को आजीवन याद किया जाएगा ।

 

*कैलाश गर्ग रातड़ी,जिला बाड़मेर ( राजस्थान )


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