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अखंड भारत की अखंड परंपरा


*नीरज मिश्रा

पूर्व ब्रह्मलोक- सुषा नगर वर्तमान में( ईरान) से लेकर इंडोनेशिया तक अखंड भारत वर्ष। तीनों ओर से सिंधु रक्षा करते, सिर पर हिमालय का ताज और नाभि में गंगा मां। सनातन धर्म ( हिंदू जैन बौद्ध सिख) यहां की संस्कृति ,वेशभूषा ,भाषा सब अद्भुत है। हमारा सनातन धर्म ही श्रेष्ठ है इसकी अखंडित परंपराएं ही भारत देश को अद्भुत बनाती हैं ।धर्म सभी सम्माननीय हैं ।सभी अपने आप में श्रेष्ठ हैं । हमारा धर्म हमें किसी धर्म की आलोचना करने की इजाजत नहीं देता ,पर सनातन धर्म सबसे प्राचीन धर्म है। एक वह समय था ।जब सनातन परंपरा की खिल्ली उड़ाई जाती थी। पर आज इसी परंपरा ने पूरे विश्व में अपना परचम लहरा दिया । विदेशी तक इस परंपरा को के आगे नतमस्तक हैं।

अखंड भारत की प्रमुख परंपरा भी अखंडित है। यह अंधविश्वास पर आधारित नहीं है ,बल्कि इसका इनका अपना वैज्ञानिक दृष्टिकोण है ।अंग्रेजों ने भारत पर अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए सबसे पहले भारत की परंपराओं को विखंडित करने के लिए उस पर धार्मिक कुठाराघात किए ,जिससे सनातन सभ्यता अंधेरे व अंधविश्वास के गहरे गर्त में गिरती चली गई। जो लोग हमारी संस्कृति सभ्यता पर हंसते थे, उनको हेय दृष्टि से देखते थे ।उनको तो इनके वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण के बारे में कुछ पता ही नहीं। जैसे हमारे हिंदू सनातन परंपरा में शादीशुदा महिलाओं के सिंगार का अपना एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण होता है। जहां लाल सिंदूर भरी मांग स्त्री के सुहागिन होने की निशानी है और स्त्रियों की सुंदरता को चार चांद लगाती है, वही यह पति प्रेम का भी प्रतीक माना जाता है। पर इसका वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी है। सिंदूर में शीशा मिला होता है जो हमारे मस्तिष्क से नस पर असर डालता है जिसे एकाग्रता बढ़ती है और वह सोच समझकर कोई निर्णय लेती हैं। इसीलिए विवाहित स्त्रियों के घर नहीं टूटते थे, अगर टूटे तो भी संख्या आज की तुलना में कम ही होती थी। दूसरा माथे की बिंदी, जो की सुंदरता का एक रामबाण टॉनिकहै। इसे माथे पर आज्ञा चक्र की जगह लगाया जाता है। उस स्थान पर दबाव डालने से आज्ञा चक्र सक्रिय होता है। और आज्ञा चक्र की क्या उपयोगिता है वह तो बताने की जरूरत ही नहीं क्योंकि यह सर्वविदित और सर्वमान्य है ।ऐसे ही एक श्रंगार पैरों की उंगलियों में बिछिया पहनने की ,जो कि एक विवाहित स्त्री की पहचान है ।एक सौंदर्य प्रसाधन भी है । इसका एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी है। पैरों की उंगलियों से होती हुई एक नस जो गर्भाशय तक जाती है । बिछिया धारण करने से धारण  करने से उंगली की नस पर जो दबाव बनता है उसका असर सीधे गर्भाशय पर होता है। नर्स का या दबाव गर्भाशय को  स्वस्थ  व सक्रिय रखती है। भारतीय सिंगार में अद्भुत, अकल्पनीय ,अतुलनीय वैज्ञानिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण है। जिसकी प्रशंसा करने के लिए लेखक की लेखनी ही कम पड़ जाएगी।

भारतवर्ष के सनातन परंपरा में व्रतो का महत्व योगदान कम नहीं है ।यहां पर पुत्र के लिए हलछठ, अहोई अष्टमी, गणेश संकट जैसे व्रत व कन्याओं के लिए नवरात्र जैसे व्रत और पति के लिए करवा चौथ, हरितालिका तीज, वट सावित्री व्रत की महिमा का गुणगान है।वट सावित्री व्रत माता सावित्री के ऊपर आधारित है ।

माता सावित्री अश्वपति राजा की कन्या कन्या थी। जिसके भाग्य में वैधव्य योग था। वह बहुत ही दृढ़ और हटी थी ।उसने अपने पति के रूप में सत्यवान नामक लकडारे को चुना, जिसके भाग्य में असमायिक मृत्यु का योग था ।सावित्री को यह बात पता थी ।वह रोज घर के काम निपटा कर सत्यवान के पीछे जंगल में जाती थी। मृत्यु के दिन सत्यवान मूर्छित होकर जमीन पर गिर गया। सावित्री सब समझ गई ।उसने आए हुए यमराज को भी पहचान लिया। जब वह सत्यवान के प्राण लेकर जाने लगे तो, सावित्री उनके पीछे पीछे जाने लगी यमराज के बहुत समझाने पर वह नहीं मानी। क्योंकि वह तो  दृढ़ संकल्पित थी।हार कर यमराज ने सावित्री को 3 वरदान मांगने को कहा। सावित्री ने पहले वचन में खोया हुआ अपना राजवैभव मांगा। दूसरे वचन में अपने अंधे सास ससुर के लिए नेत्र ज्योति मांगी। और तीसरे वचन में अपने पति सत्यवान से सौ पुत्रों का वरदान मांगा। यमराज के वरदान देने के पश्चात् उन्होंने देखा कि सावित्री फिर भी उनके पीछे-पीछे चली आ रही है। यमराज ने इसका कारण पूछा सावित्री ने कहा जिस पति से सौ पुत्रों का वरदान दिया। उसके प्राण तो आप अपने साथ ही ले जा रहे हैं। फिर आपका यह वरदान मिथ्या ना हो जाएगा ।यमराज को अपनी भूल और सावित्री पतिव्रत  का एहसास हुआ और वह सावित्री पतिव्रत के आगे नतमस्तक हो गए ।उन्होंने सत्यवान को जीवनदान दिया। उस दिन जेष्ठ मास की अमावस्या तिथि थी ।और जिस पेड़ के नीचे सत्यवान का मृत शरीर पड़ा हुआ था। वह पेड़ बरगद का था ।इस कारण आज भी है ,परंपरा युगों युगों तक चली आ रही है। आज भी महिलाएं जेष्ठ मास की अमावस्या को बरगद के पेड़ की पूजा करके अपने पति की दीर्घायु की प्रार्थना करती हैं।

कहते हैं बरगद के वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों का वास होता है। इस दिन महिलाएं व्रत रखकर बरगद की पूजा करती हैं। बरगद को मीठे जल ,हल्दी कुमकुम से पूज कर कच्चा सूट लपेटा जाता है। फिर बरगद में वास देवताओं से अपने पति की दीर्घायु की प्रार्थना करती हैं ।यह व्रत हिंदू धर्म के सभी समुदायों में किया जाता है और ऐसे ही हिंदू स्त्रियों के द्वारा भारतीय सनातन परंपरा युगों युगों तक हिंदू सभ्यता में अपना स्थान बनाए रखती है। हमारे भारत में ऐसी ही अतुलनीय महिलाओं के व्रत के कारण ही सनातन धर्म की परंपराएं आजीवन (हिंदू सभ्यता का नामोनिशान रहेगा तब तक )उनका नेतृत्व करती रहेंगी।

जहां पहले सनातन धर्म का मजाक उड़ाया जाता था। वहीं आज उसी सनातन परंपराओं का बोलबाला है। विदेशों में तक हवन पूजन को मान्यता दी गई है ।आज इस महामारी ने यह भी बता दिया कि भारत की सनातन धर्म की परंपरा ही श्रेष्ठ है। फिर चाहे वह उपवास की हो ,पूजा पाठ् हो या अपने से बड़ों के चरण वंदन की हो ,नमस्कार की हो या बिना हाथ पैर धो ले घर में घुसने की परंपरा हो आज इस दौर में वजह जरूर महामारी बनी पर अंग्रेजी सभ्यता ने भी भारतीय नमस्कार संस्कृति को सर्वोपरि माना है ।


 

*नीरज मिश्रा,उरई ,जालौन ,उत्तर प्रदेश

 

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