*सुशील कुमार शैली
आंसू चीत्कार कर उठते हैं, हृदय क्रंदन करता है।
करोना से जब भी कोई, मनुष्य यहां पे मरता है।
कौम भी होती शर्मसार, माता का दूध लज़ाया है।
छुपा के लोगों को भीतर एक महारोग पनपाया है।
मानवता के वो दुश्मन थे या सोची समझी साजिश थी।
सेवाकर्मी तो समर्पित थे उनसे क्या तुम्हारी रंजिश थी।
अपने जीवन को लगा दांव पर, देने तुमको नव जीवनदान।
घर तुमको लेने आए थे वो, जिनका तुमने किया अपमान।
पत्थर मारे, मुंह पर क्या थूका , तुमने अल्लाह पर थूका है।
वो महामानव, रहें आप स्वस्थ, बस इसी बात का भूखा है।
देखो है कितने ऐसे भी, जो यहां अभी तक मानव है।
खोल तिजोरी दान बांटते ,ना रोग बांटते दानव हैं।
ऐसा भी था क्या जुनून, कहां खोया ईमां तुम्हारा था।
हो बाशिंदे हिंद के तुम, कैसा बदगुमां तुम्हारा था।
रोग महारोग बना डाला करोना को तुमने फैला दिया।
जिससे अभी तक बचे थे हम , पूरे देश को उससे हिला दिया।
ऐ वायरस कोरोना हो सावधान, हम तुझसे ना डरने वाले हैं।
ना लॉक डाउन अपना किया हमने, हम तुझको भगाने वाले है।
साजिश करने वालो कान खोल सुनो, ना गलेगी दाल हिंदुस्तान में।
ना बनो हैवान रहो इंसान, वर्ना जगह ना मिलेगी कब्रिस्तान में।
शैली करता है ये अरज , खतरनाक है कोरोना मरज।
सब रहें सुरक्षित करें यत्न , अब यही है सबकी गरज
आओ इससे खुद बचें और अपने परिवार बचाएं हम।
ले लें शपथ सब मिलकर के, एक नया राष्ट्र बनाएं हम।
फिर इतिहास दोहराएं हम, विश्व गुरु हो जाएं हम।
आओ विश्व गुरु बन जाएं हम, चलो विश्व गुरु कहलाएं हम।
*सुशील कुमार शैली, दिल्ली
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