*अनामिका सोनी
यहां वहां हर कहीं भी देखो
मौत का तांडव चारों ओर है
करुण पुकारे, क़ातर आंखें
रुदनभर ये कैसा शोर हैं।।
जीने को तरसे है जिंदगी
पर मृत्यु है पास खड़ी
भयाक्रांत, आशंकित चेहरे
परिस्थिति है विकट बड़ी।।
सेवा सुश्रुषा भी देखो
कई नराधम को खटकी
खंडित हो कर मानवता
फिर जाने कहां कहां भटकी।।
आशाओं के बंद रास्ते
घनघोर निराशाओं के दौर
छोड़ सभ्यता को मानवता
आज न जाने चली किस ओर।।
पूछ रही हर सहमीं आंखें
मौत का तांडव आखिर कब तक?
शायद चलता रहे ये सिलसिला
अमानव ना मानेगे तब तक।।
*अनामिका सोनी, उज्जैन
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