*आशु द्विवेदी
माना समय है संकट का।
पर विचलित हमें ना होना है ।
देश है बडे मजबूत हाथों में।
तनिक भी ना हमें घबराना है।
मदद माँगी है राजा ने।
तो प्रजा को साथ निभाना है।
कोरोना को हराने के लिए।
कुछ दिन और घर में।
हमें अभी रहना है ।
एक निवाला खुद खा कर।
दूजा निवाला भूखे को खिलाना है ।
मदद करनी है गरीब की।
अपना गुणगान नहीं हमें करना है
देश नही ये घर है हमारा।
हम सब को मिल कर इसे बचाना है।
पाँच अप्रैल की रात को।
सभी भारतवासी को।
अपने अपने दरवाजे पर।
दीपक एक जलाना है।
*आशु द्विवेदी, दिल्ली
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