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धरती मैया करे पुकार



*डॉ अनिल शर्मा

धरती मैया करे पुकार
बदलो मानव निजी व्यवहार।
शोषण कर ऐसे प्रकृति का
मत छीन मेरा सिंगार।।
मेरी गोदी में पलते जो ,
उन वृक्षों को काट रहे हो।
कृषि योग्य भूमि खंड को,
टुकड़े-टुकड़े बांट रहे हो ।।
ताल तलैया कूप सरोवर,
जल स्रोतों को पाट रहे हो ।
धिक धिक तेरी इस करनी को,
तुझको भी तो है धिक्कार।
धरती मैया करे पुकार,
बदलो मानव निज व्यवहार।।
कहीं पड़ रहा देखो सूखा ,
कहीं हो रहा पानी पानी।
वृष्टि और अनावृष्टि से ,
त्रस्त हुई सब की जिंदगानी।।
छेड़छाड़ कर रहे प्रकृति से,
झेल रहे हमले तूफानी ।
मची हुई भूकंपी हलचल,
करता मानव हाहाकार ।
धरती मैया करे पुकार
बदलो मानव निज व्यवहार।।
खनन कार्य करते करते
कर डाला प्राणों का दोहन।
जर्जर और और कमजोर बनी मैं
होता मेरे तन में कंपनी।।
कभी-कभी लगता है मुझको,
खत्म हुआ मेरा जीवन ।।
मुझे बचाना यदि चाहते ,
निज करनी पर करो विचार ।
धरती मैया करे पुकार
बदलो मानव निज व्यवहार।।
झूठी सुख सुविधाएं जुटाकर,
गर्वित हो तुम फूल रहे हो ।
चंदन का सुख पाने खातिर,
नाग पकड़कर झूल रहे हो ।
अपना अहम् दिखाने को तुम,
कर्तव्यों को भूल रहे हो ।
कहते हो मुझको माता तो,
संतानों सा हो व्यवहार।
धरती मैया करे पुकार
बदलो मानव व्यवहार।।


*डॉ अनिल शर्मा'अनिल'
धामपुर, उत्तर प्रदेश


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