*अशोक ' आनन '
द्वारे - द्वारे दीये जलाकर -
बंधु ! ज्योति - पर्व मनाएं ।
दिखे कहीं न आज अंधेरा ।
दीपक डालें घर - घर डेरा ।
पागल हों वे जाएं देहरियां -
खुशियों का हो जहां बसेरा ।
पीकर शबनम जैसे आंसू -
मुस्कानों के फूल खिलाएं ।
निखरे भू का यों कोना - कोना ।
दुल्हन का ज्यों रूप - सलौना ।
आकर बैरी तम कर न जाए -
भू पर कोई जादू - टोना ।
गले लगाकर दीन - दु:खियों को -
उत्सव उनके साथ मनाएं ।
भूख कहीं न ठहरी हो ।
कर्फ्यू - ग्रस्त न दुपहरी हो ।
प्रात : बनारस , शामें अवध -
उजली मन की देहरी हो ।
मंदिर - मस्ज़िद - गिरजाघर को -
मानवता का स्वर्ग बनाएं ।
*अशोक ' आनन ' ,मक्सी ,शाजापुर ( म . प्र .)
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