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भारत भूमि तू ही हमारी नौका औ पतवार



*जयसिंह आशावत


भारत भूमि तू ही हमारी,
नौका औ पतवार।
हम तेरी संताने माता,
वंदन बारंबार ।


सदा वत्सला ममता मूरत ,
बाँटे केवल प्यार।
पर्वत नदियां झरने उपवन,
 भरे अन्न भंडार ।
षट-ऋतुएं जिसके आंगन में,
 करती सदा विहार।
 भारत भूमि तू ही हमारी,
 नौका औ पतवार।


हिंदू मुस्लिम सिक्ख इसाई ,
जैन पारसी धर्म ।
सब को अपना माने माता,
 गोद मुलायम नर्म।
संविधान भारत का देता ,
सबको सम अधिकार ।
भारत भूमि तू ही हमारी ,
नौका औ पतवार


 वैभव फैला था अतीत में ,
ब्रह्मदेश के पार।
 अपने ही हिस्से होते थे ,
काबुल औ कंधार।
 गुंजित पूरा हिमगिरि सागर,
 तेरी जय जय कार ।
भारत भूमि तू ही  हमारी,
 नौका औ पतवार।


अब तेरी सीमाओं पर माँ,
आँख नहीं उठेगी ।
धूर्त दृष्टि से देखे उसकी,
मुण्ड वहीं कटेगी ।
माता है तू सवा अरब की ,
दें जीवन न्यौछार ।
भारत भूमि तू ही हमारी,
नौका औ पतवार।।


*जयसिंह आशावत, नैनवा


 


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