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आखिर शहर छोड़ने पर लोग मजबूर क्यूँ?



*अजय कुमार व्दिवेदी


कल बड़े ही दुखी मन से। सुरेश अपने पत्नी और बच्चों के साथ। शहर छोड़कर अपने गांव जानें के लिए। अपने घर से पैदल ही निकल पड़ा। सुरेश के दो बच्चे थे एक पांच वर्ष का और एक तीन वर्ष का। सुरेश ने अपने बड़े बेटे सचिन को गोद में उठा रखा था। और साथ ही में कपड़ों से भरा एक बैग भी कन्धे पर टांग रखा था। सुरेश की पत्नी माधवी ने अपने छोटे बेटे उत्कर्ष को गोद में ले रखा था। साथ ही कपड़ों से भरा एक बैग माधवी ने अपने कन्धों पर टांग रखा था। और दोनों रास्ते में आने वाली परेशानियों से बेखबर पैदल ही अपने गांव की ओर चल दिए थे। आखिर क्यूँ सुरेश ने ऐसा कदम क्यूँ उठाया क्या सुरेश को कोई परेशानी थी। जिसकी वजय से सुरेश ने ऐसा कदम उठाया था। बार बार मेरे मन में यह प्रश्न उठ रहा था। मैं अपने मन ही मन यह सोंच रहा था। कि आखिर ऐसा क्यूँ सुरेश ने ऐसा क्यूँ किया। माना कि देश को पूर्ण रूप से बन्द किया गया है। प्रधानमंत्री जी ने स्वयं भारत बन्द की घोषणा की है। परन्तु सभी के रहने खाने-पीने की व्यवस्था भी की है। किसी भी व्यक्ति को भूखा नहीं रहने दिया जाएगा। प्रत्येक व्यक्ति को भोजन कराने की जिम्मेदारी सभी राज्य सरकारों ने ले रखी है। किरायेदारों से एक महिने का किराया न लेने का मकान मालिकों से आग्रह किया गया है। सभी व्यवसायियों से अपने कर्मचारियों का वेतन न काटने का आग्रह किया गया है। गरीबों को मुफ्त अनाज उपलब्ध कराया जा रहा है। उसके बाद भी अगर सुरेश अपने परिवार के साथ पैदल ही अपने गांव की तरफ जाने के लिए निकल पड़ा है तो क्यूँ। इतनी सारी सुविधाएं मिलने के बाद भी आखिर सुरेश अपने गांव क्यूँ जाना चाहता है। क्या सुरेश को अपने-आप से अपनी पत्नी और बच्चों से प्रेम नहीं है। क्यूँ सुरेश अपने साथ साथ अपने पूरे परिवार की जिंदगी दांव पर लगा रहा है। ऐसी क्या मजबूरी है सुरेश की। या फिर कोई मजबूरी नहीं है। ये सब सुरेश की बदमाशी है। जिसके चलते वो अपनी और अपने परिवार के प्राणों को खतरे में डाल रहा है। सिर्फ सुरेश ही क्यूँ मदन, मोहन, रामदेव, रामलाल, विक्रम, विनोद, और इनके जैसे हजारों मजदूर अपनी और अपने परिवार के प्राणों को खतरे में डालने पर मजबूर हो गये हैं। इन हजारों की संख्या में शहर छोड़ने को मजबूर व्यक्तियों की उमड़ी भीड़ को देखकर मेरा पूरा बदन सिहर सा गया। एक अनजाने से डर ने मेरे हृदय और मन मस्तिष्क पर डेरा जमा लिया। मैं बार बार यह सोच कर डर जाता हूँ कि अगर इस हजारों की भीड़ में कोई एक व्यक्ति भी कोरोना जैसी भयानक बीमारी से पीड़ित हुआ तो वह एक व्यक्ति हजारों की संख्या में लोगों को संक्रमित कर देगा। जिसके पश्चात इस महामारी को रोकना मुश्किल हो जाएगा। और एक सौ तीस करोड़ भारतीयों के प्राणों पर संकट बन आयेगा। पर क्या जो डर मेरे मन में है। वो डर शहर छोड़कर जाने वाले इन व्यक्तियों के मन में नहीं है। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए। मैंने अपने मन में विचार किया कि मै इस बात का पता लगाता हूँ। कि आखिर क्यूँ ये लोग इतनी सुविधाओं के बावजूद शहर छोड़कर जा रहे हैं। और मैने देखा कि इनके शहर छोड़कर जाने में दोष केवल इनका नहीं है। इसमें सबसे बड़ा दोष अफवाह फैलाने वाले गैंग का है। ये हजारों लोग केवल और केवल अफवाहों के चलते अपने-अपने घरों से शहर छोड़ने के लिए निकल पड़े। परन्तु सोचने की बात यह भी थी कि जब सभी प्रकार की सुविधाएं इनको उपलब्ध करायी जा रही है। तो ये लोग शहर छोड़ क्यूँ रहे हैं। अब मेरा ध्यान सरकार की तरफ गया। और मैने देखा कि सरकारें लोगों के भोजन की व्यवस्था तो कर रही है। परन्तु वह व्यवस्था पर्याप्त नहीं है। उसमें भी कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनके घर में दो तीन महीने तक खाने-पीने की कोई समस्या नहीं हो सकती है। बीना किसी की सहायता केे वो लोग भी मुफ्त में खाना लेने के लिए लाइनों में खड़े है। ऐसे में जरूरतमंद व्यक्तियों को खाने की कमी पड़ जा रही है। और भूखा व्यक्ति यह सोचने पर मजबूर हो जा रहा है कि कोरोना जब होगा तब होगा। पर भूख सेे तो हम अभी मर जाएंंगे इससे अच्छा है कि हम शहर छोड़कर गांव चलेें जाएंं। अब बात यह है कि आखिर इस प्रकार की धांधली को रोकेगा कौन। क्या सरकारों को आगे बढ़ कर इसे रोकना होगा। या फिर पुलिसकर्मियों को इसे रोकना होगा। परन्तु कैसे सरकारों और पुलिस कर्मियों को कैसे पता चलेगा कि कौन जरूरतमंद है और कौन नहीं। काफी सोच-विचार के बाद मुझे उत्तर मिला। कि इस प्रकार की धांधली को रोकने और जरूरतमंद लोगों तक भोजन पहुचाने का काम स्थानीय सम्पन्न लोगों को करना चाहिए। वह स्थानीय लोग जो खुद उस लाइन में नहीं लगते पर दूसरे सम्पन्न व्यक्ति को रोकते भी नहीं हैं। उन्हें आगे बढ़ कर रोकना होगा। ताकि एक जरूरतमंद परिवार को भोजन मिल सके। और सरकारों को भी सोचना होगा कि जिन लोगों के पास राशनकार्ड नहीं है। उनकों भी राशन दिया जाए। क्योंकि दिल्ली एन सी आर में अधिकांश व्यक्ति किराए पर रहते हैं। जिनका राशनकार्ड नहीं बना है। कुछ व्यक्ति ऐसे भी हैं जिन्होंने हाल ही में अपनी पूरी जमा पूंजी लगा कर उधार लेकर व्याज पर पैसे लेकर एक छोटा सा घर खरीदा है। उनका भी राशनकार्ड नहीं है। और व्याज भरने में ही सारी कमाई समाप्त हो जाती है। उनकों भी राशन की आवश्यकता है। इसलिए सरकारों को उनकी सहायता करने के लिए कोई न कोई उपाय निकालना चाहिए। और अगर ऐसा हो जाता है तो कोई भी व्यक्ति अपना घर छोड़कर नहीं भागेगा। और पूरा भारत एक साथ कोरोना से लड़ने के लिए मजबूती से खड़ा हो जाएगा। और हम सब जानते हैं कि एकता में शक्ति होती है। और आखिर में एक निवेदन के साथ अपनी कलम को विराम दूंगा। कि आप सभी अपने घर में रहें। जो जहाँ हैं वहां रहें। अपने-आप को और अपने परिवार को सुरक्षित रखें। स्वस्थ्य रहे। बार बार अपने हाथों को साबुन से या स्वक्ष जल से धोते रहें। अपने आँख नाक और मूहँ को बीना हाथ धोएं न छुएं। घर में रहें। सुरक्षित रहें। और कोरोना से लड़ने में देश का सहयोग करें। धन्यवाद


 

*अजय कुमार व्दिवेदी

 


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