*हमीद कानपुरी
आईना उस को दिखाया देर तक।
खूब रह रह तम तमाया देर तक।
हर तरह का ज़ुल्म ढाया देर तक।
हौसले को आज़माया देर तक।
आँधियाँ थक हार जब वापस हुईं,
हर दिया खुल मुस्कुराया देरतक।
सामने हमदर्द पाया जिस घड़ी,
हाल अपना फिर सुनाया देर तक।
खुद समझ पाया नहीं हालात को,
मूर्ख दुनिया को बनाया देर तक।
हारकर वापसहुआ कमबख्त फिर,
अपनामकसद जबनपाया देरतक।
*हमीद कानपुरी
अब्दुल हमीद इदरीसी
179, मीरपुर कैण्ट कानपुर
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