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जानिए आपके बच्चे खुश है या दुखी (मन की बात-3)



*सोनी जैन


दोस्तों आज बात करेंगे बच्चों के बारे में...क्योंकि आज के बच्चों को अब तक की सबसे कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है इस प्रतिस्पर्धा (compitition) के कारण बच्चे के ऊपर मानसिक दबाव लगातार बढ़ा है जिसका असर उनके मस्तिष्क के साथ शरीर पर भी स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।एक सर्वे के अनुसार 19 साल की आयु से पहले चार में से एक बच्चा डिप्रेशन का शिकार हो ही जाता है।


दोस्तों हम में से हर माता-पिता बच्चों को ऐसे मुकाम पर पहुंचा देना चाहता है जहां वे आर्थिक रूप से संपन्न हो,सफल हो।इसके लिए हम बच्चों को हर तरह की शिक्षा,ट्रेनिंग और प्रतियोगिता का सामना करना सिखाते हैं ,क्योंकि हम बच्चो को हर हाल में खुश देखना चाहते है।और ख़ुशी तभी मिल सकती है जब उनपर पैसे की कोई कमी न हो ऐसा हम सभी सोचते है। इसीलिए ऐसे बच्चों को भी इस दौड़ में शामिल कर देते हैं जो कि कभी इस दौड़ के लिए बने ही नहीं थे।मेरा कहने का मतलब है जिन बच्चों की रुचि कला,संगीत या साहित्य में होती है उन्हें भी हम इंजीनियरिंग और डॉक्टर बनने की शिक्षा देते हैं ।जिसके कारण उनमे लगातार मानसिक दबाव बढ़ता है और उनके जीवन का हिस्सा बन जाता है। हमारा सारा ध्यान उन्हें काबिल बनाने की जगह डिग्री दिलवाने में रहता है।


WHO  के आंकड़ों पर नजर डालें तो पाएंगे कि समाज में मानसिक अस्वस्थता,दबाब, डिप्रेशन के साथ-साथ आत्महत्या की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही हैं ऐसी स्थिति आने वाले समय में और अधिक बढ़ेगी। आर्थिक संपन्नता  होते हुए भी भावी पीढ़ी का जीवन सुखद नहीं हो पाएगा ।क्या हमने सोचा है कि आर्थिक रूप से सफल लोग सामाजिक व पारिवारिक जीवन में भी सफल हो पाएंगे? क्या हमने उन्हें पैसा कमाने के साथ-साथ यह सिखाया कि किस तरह से उसे खर्च किया जाए?कैसे खुश रहा जाए ?कैसे मानसिक रूप से स्वस्थ रहा जाए ? क्या यह सब बताया? शायद नही।

 

दोस्तों बच्चो पर हमारी महत्वाकांक्षाओं का बढ़ता हुआ दवाब उनकी नैसर्गिक योग्यता को खत्म करता जा रहा है जिस क्षेत्र में वह अपना सर्वोत्कृष्ट दे सकते थे  वही  हम उन्हें करने का मौका नहीं देते।

 

 इसी के साथ साथ साथियों का दबाव, इंटरनेट का बढ़ता प्रयोग, जानकारी का विस्फोट, माता-पिता की व्यस्तता कुछ ऐसी चीजें हैं जोकि बच्चों को भटका रही हैं। बच्चों यह भटकाव उनमे तनाव,चिंता और डिप्रेशन के साथ-साथ कई बार अल्कोहल और ड्रग्स जैसी लत भी लगा देताा है ।कब कोई दूसरा व्यक्ति उनका यौन शोषण कर दे इसका भी पता नही चल पाता।

दोस्तों सवाल उठता है कि आखिर क्या किया जाए कि हमारे बच्चे करियर में बहुत अच्छा करें,मानसिक रूप से स्वस्थ रहें, खुश रहें और अपने परिवार,देश और समाज के लिए अपना योगदान भी कर सके।

 

दोस्तों बच्चों की हर समस्या का समाधान उनके माता-पिता ही हैं। यदि माता के कुछ चीजों का ध्यान रखें तो उनके बच्चे कभी भी चिंता और तनाव के शिकार नहीं होंगे और यदि कभी उनको यह समस्या हुई भी तो माता-पिता उन्हें वहां  शीघ्र बाहर निकाल लाएंगे। सबसे पहले हमें अपने बच्चों का दोस्त बनना है उनके लिए समय निकालना है और उनसे बातें करनी है जैसे कि हम बचपन में उनके साथ किया करते थे। उनकी हर बात को बहुत ध्यान से सुनते थे और अगर वह गलती भी करते थे तो उन्हें प्यार से समझाते थे। यदि आप अपने बच्चे के दोस्त बन जाएंगे तो वह अपने अन्य दोस्तों की बातें भी आप को खुल कर बताएंगे और जब वह बातें बताएंगे तो दोस्त की तरह ही आपको सुनना भी है ,अगर कुछ गलत लगे तो फिर पहले की तरह  उनके परिणाम बताकर प्यार से समझा  देना है। इससे उनके गलत रास्ते पर भटकने के अवसर बहुत कम हो जायेग।यदि कोई उनका यौन शोषण  या अन्य तरीके से उन्हें  भटकाने की कोशिश करेगा तो भी आपको पता चल पाएगा क्योंकि  आपके बच्चों में आपके लिए इतना विश्वास  बढ़ जाएगा  कि वह हर तरह की बात आपसे कर पाएंगे। और अपने आप को सुरक्षित महसूस करेंगे।

 

आपको अपने बच्चों की योग्यता और रुचियो को ठीक से समझना होगा।ताकि उनके कैरियर को सही दिशा  दी जा सके। आज के समय में  हर क्षेत्र में कैरियर बनाने के बहुत से अवसर है, आवश्यकता है सही दिशा में उन्हें निर्देशित करने की।इसके लिए आप उनकेे स्कूल या फिर कैरियर काउंसलर की भी मदद ले सकते हैं ।जब बच्चा बिना किसी दबाव के अपनी इच्छा के अनुसार कैरियर  चुनेगा तो हर प्रतियोगिता का सामना अपने आत्मविश्वास के साथ करेगा  और उसमें सफल भी होगा उसकेेेे बाद ना तो वह आपको कोसेगा ना ही अपने आप को। अच्छी आर्थिक स्थिति के साथ - साथ आपका बच्चा भी  खुश रहेगा।

दोस्तो एक बात और ध्यान रखिएगा कि प्रतियोगिता एक अच्छी चीज है लेकिन तभी तक जब तक कि वह हमें मेहनत के लिए प्रेरित करें ।हमें अपने बच्चों को यह सिखाना है कि एक दूसरे के ऊपर पैर रखकर उन्हें आगे नहीं बढ़ना बल्कि उन्हें साथ लेकर आगे बढ़ना है। जीवन में सफलता और असफलता तो आती रहती है सभी का अपने आत्मविश्वास के साथ सामना करना है।इस प्रकार आपका बच्चा कभी भी कुंठित नहीं होगा और  मानसिक रूप से स्वस्थ रहेगा।

 

दोस्तों यदि किसी तरह हमारा बच्चा भटक भी गया है तो कभी भी हमें सहायता लेने में हिचकिचाना नहीं चाहिए। तनाव चिंता और डिप्रेशन के लक्षण को पहचान कर शीघ्र उन्हें उपचार दिलवाना।

 


*सोनी जैन

स्वतंत्र  लेखिका - मनोविज्ञान

मेरठ


 


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