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भय बिनु होइ न प्रीति






*नवेन्दु उन्मेष

हमारे देश में पिटाई और पिटाई शास्त्र का बड़ा महत्व है। घर में अगर बच्चे उधम मचाते हों तो माता-पिता दो तमाचा बच्चों पर जड़ देते हैं और उनकी मांगों पर ताला लगा देते हैं। पिटाई खाने के बाद बच्चा चुप हो जाता है और अपनी मांगों को लेकर चुप हो जाना अच्छा समझता है।

देश में ज्यादातर वही फिल्में सफल रही हैं जिनमें मार-धाड़ के सीन ज्यादा होते हैं। अभिनेता विलेन को जब पीटता है तो सिनेमा के दर्शक सिनेमा हाल में वाह-वाह करते नहीं थकते हैं। कुछ दर्शक तो ‘ और मारो, और मारो ’ की आवाज भी मुंह से निकालते हैं। उन्हें लगता है कि वे सिनेमा हाल में नहीं बल्कि सचमुच किसी लड़ाई के मैदान में बैठे हों। यही कारण है कि लोगों को राम-रावण युद्ध, महाभारत की लड़ाई के प्रसंग अच्छे लगते हैं। गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को भी लड़ाई के महत्व के बारे में बताया है। यहां तक कि महाभारत में भाई-भाई से कैसे लड़ते हैं इसका उल्लेख है।

दंगा-फसाद से लेकर कई कारणों से जब देश में कर्फ्यू लगते हैं तब भी पिटाई का महत्व लोगों की समझ में आता है। रामायण में तुलसीदास ने भी लिखा है ‘भय बिनु होइ न प्रीति।‘ इससे जाहिर होता है कि तुलसीदास के जमाने में भी लड़ाई-झगड़े होते थे और कर्फ्यू भी लगते थे। उस जमाने की पुलिस डंडे लेकर तैनात रहा करती होगी उपद्रवियों को ठीक करने के लिए। यह भी संभव हो कि तुलसीदास के जमाने में जब लोग अपनी मांगों को लेकर धरना-प्रदर्शन या जुलूस निकालते होंगे तो उनकी पिटाई उस समय के शासकों के द्वारा की जाती होगी।

आधुनिक युग में पिटाई शास्त्र की शुरूआत स्कूलों से होती है। जिन शिक्षकों को कक्षा में पढ़ाने में मन नहीं लगता है। वे घर से छड़ी लेकर आते है ताकि छात्र उन्हें पढ़ाने के लिए तंग नहीं करें। अगर छात्र उनसे कक्षा में कुछ ज्यादा प्रश्न पूछते हैं तो वे छड़ी चलाते है या तमाचा जड़कर छात्रों का मुंह बंद करा देते है। हमारे विश्वविद्यालयों में भी पिटाई का बड़ा महत्व है। छात्र जब किसी मांग को लेकर आंदोलन करते हैं तो कुलपति तुरंत पुलिस बुला लेते हैं और डंडा चलवाकर उनका मुंह बंद करा देते हैं।

पंडित जवाहर लाल नेहरू के जमाने में कवि गोपाल सिंह नेपाली ने भी पिटाई के महत्व को अच्छी तरह समझा था। उन्होंने अपनी कविता में कहा था ‘ओ राही दिल्ली जाना तो कहना अपनी सरकार से चरखा चलता है हाथों से शासन चलता तलवार से।‘  जाहिर है आजादी के वक्त गांधी और नेहरू का जोर चरखा चलाने पर था। जब देश में ’हिन्दी-चीनी भाई-भाई’ का नारा दिया जा रहा था तो चीन ने पिटाई शास्त्र का अभिनव प्रयोग करते हुए नेफा लद्दाख पर आक्रमण कर दिया था। तब भारतीय जवानों को नेहरू ने कहा था बीलो वेल्ट मारो। जब इस लड़ाई में नेहरू परास्त हुए तब आदेश दिया कि चीनी सैनिकों को कहीं भी मारो। लेकिन मारो जरूर। इसके बाद नेहरू का चरखा देश से गायब हो गया और लड़ाई के लिए आधुनिक अस्त्र-शस्त्र खरीदने की प्रक्रिया भी शुरू हुई। देश के रक्षा बजट में भी इजाफा हुआ।

कई विधानसभाओं के सदन में विधायक भी पिटाई शास्त्र का अनुसरण भलीभांति कर चुके हैं। एक-दूसरे पर माइक से लेकर जुते-चप्पल तक चला चुके हैं। कोरोना को लेकर जब देश में भय का वातावरण है तब पुलिस लाठी डंडे लेकर चौक-चौराहे पर खड़ी है। लोग पिटाने के बाद ही घरों में वापस जा रहे हैं। जब देश में हेलमेट पहनना अनिवार्य किया गया तब भी पिटाई शास्त्र का महत्व बढ़ गया था। बगैर पुलिस के डंडे के लोगों हेलमेट पहन नहीं रहे थे। जब पिटाई हुई तो सभी को समझ में आया कि वाहन चलाते वक्त हेलमेट पहनना क्यों जरूरी है।

*नवेन्दु उन्मेष,रांची, झारखंड

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