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आततायियों को फाँसी



*राजेश’ललित’

संविधान/क़ानून,न्याय का मजाक बनाया गया।इस सारी प्रक्रिया पर सरकार पुनर्विचार करे: नया क़ानून बनाये जिससे न केवल कानूनविदों को भी सबक़ सिखाने का भी प्रावधान हो।जिस निर्णय पर सर्वोच्च न्यायलय और माननीय राष्ट्रपति जी कीॉोहर लग चुकी हो उसी निर्णय को बार बार चुनौती देना हमारी न्यायप्रणाली और संविधान पर प्रश्न चिन्ह लगना स्वभाविक है? ऐसे कई रेल हैं जिन पर बार बार अपील कर के बरसों तक लटकाया जाता है और क़ानून का मज़ाक़ उड़ाया जाता रहा है।अंग्रेज़ी में कहावत है ‘Justice delayed is justice denied’. आपके पास पैसा है;आप प्रसिद्ध हस्ती हैं:आप ग़रीब हैं पर केस उलझा हुआ है;अपनी प्रसिद्धि पाने रे लिये वकीलों की लाईन लग जायेगी।आप देखिये कई बार दुर्दांत अपराधी बरसों अपने जीवन का स्वर्णिम समय विदेश में बिकाने के बाद हमारे क़ानून और संविधान की कमजोरी का लाभ उठाते हुये वापिस आते हैं और लंबी क़ानूनी प्रक्रिया को अपना कर अंतिम समय अपने घर में गुज़ार देते हैं।आज देश में न्याय प्रणाली को पुनर्गठित करने की ज़रूरत है।लोकतंत्र रे नाम पर कि कहीं गलत आदमी को सज़ा न हो  इस के चक्कर में कई मासूम सालों इसलिये देवों रे अंदर सड़ रहे हैं कि ज़मानत की छोटी सी दो हज़ार से पाँच हज़ार की छोटी राशि नहीं जुटा पाते । निर्भया रे मामले उसकी माँ ने हार नहीं मानी और केस को अंतिम निर्णय तक पहुँचाया। बहुत धैर्य और बहुत समर्पण का परिचय दिया है।परमात्मा निर्भया की आत्मा को शांति दे कि वह इतनी विभित्सता को न झेल पाने से मृत्यु को प्राप्त हुई। यह केस भविष्य में कानूनव्यवस्था के उदाहरण के रूप में हमेशा याद किया जायेगा।

 

*राजेश’ललित’,दिल्ली 

 


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