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इस घर को क्यों छोड़ चले बाबू जी



*डॉ. अनिता सिंह


यह घर जो आपको प्यारा था
स्नेह के रिश्तों से इसे संवारा था
इस घर को क्यों छोड़ चले बाबू जी।

रंग - रोगन कर खूब सजाया था
अटूट रिश्ता भी खूब निभाया था
फिर यह बंधन क्यों तोड़ चले....।

आपके बिना यह घर भी थक कर हार गया
सुनी है इसकी देहरी ,आँगन में उदासी पसरी है
इन सबको कैसे छोड़ चले.....।

यह घर तो सुख -दुख का साक्षी था
खुशी में मुस्काया, दुख में धैर्य बँधाया था
सारी चिंताओ को भी इसने पार लगाया था
फिर मोह -माया की डोरी क्यों तोड़ चले..।

जो आएगा वह जाएगा, यह नियम तो शाश्वत है
हर रिश्ते को ब- खू -बी निभाया था
रिश्तों के भँवर में माँ को अकेले क्यों छोड़ गये
बाबू जी......।
यह घर जो आपको प्यारा था
इस घर को क्यों छोड़ चले बाबू जी।

*डॉ. अनिता सिंह
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)


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