*प्रशांत शर्मा
है अगर इश्क तो तूफान सा क्यूं है
वही एक शख्स यहां भगवान सा क्यूं है
है अगर अमन तो बेजान सा क्यूं है
नेपथ्य का वो शोर अज़ान सा क्यूं है
अभी अभी तो बदला था मौसम
फिर इस कदर बेईमान सा क्यूं है
ता उम्र ख्वाबों में आता रहा जो शख्स
हकीकत में इतना अनजान सा क्यूं है
वो कहता है तीरों से खाली है तरकश
फिर हाथों में उसके कमान सा क्यूं है
पानी का बुलबुला ही तो है जिंदगी
फूटना है फिर ये अभिमान सा क्यूं है
*प्रशांत शर्मा
चौरई, जिला छिंदवाड़ा
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