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तिरंगा आन है मेरी तिरंगा जान है मेरी















*संगीता श्रीवास्तव 'सुमन'


तिरंगा आन है , मेरी तिरंगा जान है मेरी
वतन के ज़र्रे ज़र्रे पर , ये जां कुरबान है मेरी |
ये जां कुरबान है मेरी ....

मुझे इक रोज़ मर कर के ,इसी मिट्टी में मिलना है 
मुझे फिर बीज बनकर के , यहीं उगना है बढ़ना है 
इसी मिट्टी की खुशबू से महकती शान है मेरी ।
ये जां कुरबान है मेरी , ये जां कुरबान है मेरी ....

नहीं तेरा नहीं मेरा , वतन हम सब का अपना है
लगाई आग जिसने भी , उसे भी ख़ाक होना है
ज़माना देख ले मुझको ,कि क्या मुस्कान है मेरी |
ये जां कुरबान है मेरी ,  ये जां कुरबान है मेरी ....

अजर भारत है ये मेरा , नये युग का लिये सपना
परिंदा भर उड़ा जज़्बा , गगन को चूमके रहना
खड़ा है जग गुरू बन के , ये इक पहचान है मेरी |
ये जां कुरबान है मेरी , ये जां कुरबान है मेरी ....

*संगीता श्रीवास्तव 'सुमन' , छिन्दवाड़ा

 













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