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प्रथम आना सफल होना नहीं है




*अरविन्द शर्मा*


आजकल षिक्षा का जो स्वरूप दिखाई दे रहा है, उसमें विद्यार्थियों के प्रथम आने पर बहुत ज़ोर दिया जाता है। माता-पिता एवं समाज में रहने वाले लोगों का मानना है कि यदि विद्यार्थी प्रथम, द्वितीय या तृतीय आता है तो उसके लिए विभिन्न सरकारी, गैर सरकारी एवं कॉर्पोरेट क्षेत्रों के मार्ग अपने आप खुल जाते हैं। लोगों की सोच होती है कि परीक्षा में वरीयता के आधार पर ही इन क्षेत्रों में नौकरी आसानी से मिल जाती है, लेकिन यहाँ विचारणीय बात यह है कि नौकरी पाना और उसे श्रेष्ठतापूर्वक बनाए रखने में अंतर है।
आज के आधुनिक युग में प्रत्येक क्षेत्र में प्रथम आने की होड़ लगी हुई है। सभी चाहते हैं कि वो सबसे आगे रहें। यह मनुष्य का जन्मजात गुण है। जीवन में सभी प्रथम नहीं आ सकते क्योंकि प्रथम आने का दायरा बहुत छोटा है। प्रथम स्थान पर आने का यह तात्पर्य कतई नहीं है कि आप सफल हैं, क्योंकि मानव जीवन में आने वाली विपरीत परिस्थितियों से जूझने के बाद ही यह तय होता है कि कौन सफल है ? पुरातन काल से कहा जा रहा है कि 'सोना तपने के बाद ही ख़रा सोना' बनता है।
भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के विषय में कहा जाता है कि वह स्कूली पढ़ाई में मध्यम दर्जे के विद्यार्थी रहे लेकिन, वह भारत ही नहीं विष्व के सफलतम् व्यक्तियों में से एक हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन को अपने जीवन काल में अनेक चुनावों में हार का सामना करना पड़ा लेकिन, एक राष्ट्रपति के रूप में वह सफल व्यक्ति कहलाए। ऐसे अनेक उदाहरण इस विष्व में देखने और सुनने को मिलते हैं।
प्रथम आना और सफल होने में अंतर है...
परीक्षा में सर्वाधिक अंक प्राप्त कर आप प्रथम स्थान प्राप्त कर सकते हैं लेकिन, सफल वही है जो स्वयं को कमज़ोर स्थिति से बेहतर स्थिति में पहुँचा सकते हैं। इस बात को एक छोटे से उदाहरण के माध्यम से आसानी से समझा जा सकता है, यदि एक विद्यार्थी कक्षा में वार्षिक परीक्षा से पूर्व सम्पन्न सभी परीक्षाओं में 98 प्रतिषत प्राप्त कर प्रथम स्थान पर आता है। दूसरी ओर वह विद्यार्थी है जो इन्हीं परीक्षाओं में बहुत कठिनाई के स्थान उत्तीर्ण हुआ है और हमेषा कक्षा में सबसे अंतिम स्थान पर आता हो, लेकिन वार्षिक परीक्षा में 98 प्रतिषत लाने वाला विद्यार्थी 93 प्रतिषत लाकर शाला में प्रथम स्थान में आए, वहीं दूसरी ओर दूसरा विद्यार्थी किसी से प्रेरणा पाकर, पढ़ाई में मन लगाकर कक्षा में 15वाँ स्थान पाए तो, ऐसी स्थिति में 93 प्रतिषत प्राप्त कर शाला में प्रथम आए विद्यार्थी से ज्यादा सफल कक्षा में 15वें स्थान पर आए विद्यार्थी को ज्यादा सफल माना जाएगा। क्योंकि पहला विद्यार्थी प्रथम स्थान प्राप्त कर दृष्टिगत् रूप से तो आगे माना जाएगा लेकिन वस्तुतः देखा जाए तो उसने अपने पूर्व परिणाम से 5 प्रतिषत कम अंक प्राप्त किए जो कि उसकी व्यक्तिगत् असफलता कहलाएगी, जबकि दूसरा विद्यार्थी अपनी कम अंक प्राप्त करने के बाद भी अपने अंतिम स्थान को 15वें स्थान में परिवर्तित करने में सफल रहा जो की उसकी उन्नति एवं सफल होने का द्योतक है।
अतः विद्यार्थियों और बच्चों को यह कभी नहीं सोचना चाहिए कि प्रथम श्रेणी में आना ही सफलता की निषानी है। इसका अर्थ यह भी नहीं कि जो प्रथम श्रेणी में आ रहे हैं वह सफल नहीं हैं क्योंकि प्रथम आना या प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होना अपने आप में गौरव की बात है। अतः सभी बच्चों या विद्यार्थियों को यह प्रयास करना चाहिए कि वो दिन प्रतिदिन अपने प्रदर्षन को और बेहतर बनाते जाए।
*अरविन्द शर्मा,
विषय विषेषज्ञ, सृजनात्मक लेखन प्रभाग,जवाहर बाल भवन, भोपाल











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