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तुम्हें मेरी कसम (लघुकथा)







*मीना गोदरे*


वाश एरिया में कपड़े धोने की मशीन के पीछे उस दिन नजर पड़ी तो वहां रखी बास्केट में दो अंडे रखे देख मैं चौंक गई ,खिड़की के बाहर बिजली के तारों पर बैठी कबूतरी एकटक  मुझे देख रही थी। मुझे समझते देर न लगी कि कुछ दिनों से यह रोज-रोज क्यों वाश ऐरिया में घुस रही है ,उसका डर और पीड़ा समझते ही मन कराह उठा। उसे आश्वस्त करने के इरादे से मैं जल्दी ही वहां से हटकर अंदर कमरे में आ गई।


पति शशांक को बताया तो उन्होंने वह अंडे की टोकरी हाथ में उठा ली बोले -"इन्हें में बाहर रख देता हूं तो वो  कबूतर भी नहीं आ पाएगा"


मैं लगभग चीख पड़ी "अरे उन्हें जल्दी से वहीं रख दो जहां उसने दिए हैं और हां , अब कुछ दिन खिड़की में जाली नहीं लगाना वहां आप जाना भी नहीं"


"कल तक तो तुम इतनी परेशान थी उस कबूतर से,,,, ,रोज खिड़की पर जाली लगाने की रट लगाए थीं ,और जाली ले आया हूं तो लगाने नहीं दे रही हो"


"हां कल तक मुझे नहीं मालूम थी उसकी स्थिति "


"तुम्हें पता है अंडे में से चूजे निकलेंगे वह जब तक उड़ने लायक नहीं हो जाएंगे यहीं रहेंगे और वह कबूतर भी आता रहेगा"


"वह कबूतर नहीं कबूतरी है, आने दो उसे...  मैं समझ सकती हूं  उसकी पीड़ा, इंसानों के बीच अपने बच्चों की सुरक्षा उनका डर और  उसके अव्यक्त ममत्व को।"


"क्या तुम नहीं जानती ? बच्चा पैदा होने और उनके उड़ने में 20 -25 दिन तो लग ही जाएंगे, तब तक वह दोनों कबूतर यहां आते ही रहेंगे"


"लगने दो.....जब तक उसके बच्चे पैदा न हो जाएं और अपने पैरों पर खड़े न हो जाएं तुम्हें मेरी कसम, तुम उन्हें डिस्टर्ब नहीं करोगे"


"सच में तुम औरतों को समझना हमारे वश की बात नहीं है"


"यही तो फर्क है तुम में और मुझ में....कहते हुए मैंने चावल के कुछ दाने  और पानी का सकोरा बास्केट के पास सरका दिया, वह भी मुस्कुराने लगे।


*मीना गोदरे, अवनी,इंदौर,मो . 9479386446








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