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सजल नयन (दृष्य काव्य)






*दुर्गा सिलगीवाला*


 


मति ही हर लीन्हा हरि ने, 


किया कैकई बुद्धि विनाश,


सकल सन्मति ही छीन ली, 


श्रीराम को दे दिया बनवास, 


 


सूर्य वंश पर छाई निराशा, 


रामराज्य की टूटी सब आशा,


अवध समूची फैली हुई थी, 


जन जन को भी हुई निराशा,



 सीता जनक सुता अति सरल, 


चौदह बरस बरसे नयन सजल,


असहनीय स्व हरण का दु:ख,


अमृत मान पी लिया गरल, 


 


स्वपुत्र सिंहासन की चाहत, 


रघुकुल के माथे कलंक बनी, 


किन्तु यह लीला अमर हुई, 


विधि मानव रूप मैं हरि जनी, 


*दुर्गा सिलगीवाला भुआ बिछिया जिला मंडला मध्य प्रदेश 8817678999







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