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मिलजुल कर महिमागान करे (कविता)











*अजय कुमार द्विवेदी*


इस भारतवर्ष की महिमा का। 


अपमान करेगा क्या कोई।


किसी और देश का होने पर। 


अभीमान करेगा क्या कोई।


हर्षित हूँ मै की मुझे भारतीय। 


होने का सौभाग्य मिला।


इस भारतीय संस्कृति का। 


दुष्प्रचार करेगा क्या कोई।


 


अद्भूत अकल्पनीय ये कलाकृतियां। 


जिन्हें देख प्रफुल्लित होता मन।


प्रकृति के आँचल से लिपट। 


उत्कृष्ट मगन हो सोता मन ।


इस अखण्ड राष्ट्र भारत का अपने। 


मै करता रहता हूँ बंदन।


पर राजनीति के नंगे पन को। 


देख के अक्सर रोता मन।


 


कुछ सर्प पाल कर बैठे हैं हम। 


खुद अपने ही आँगन में।


उन्हें दूध पिलाते रहते हैं। 


अपने ही घर के बर्तन में।


जो बार बार विरूद्ध हमारे। 


जहर उगलते रहते हैं।


हम उन्हें जगह दे बैठे हैं। 


अपने ही घर के प्रांगण में।


 


ऐसे अवसरवादी नेताओं का। 


चलो हम बहिष्कार करें।


जो देश को लज्जित करता हो। 


हम मिल उसका तिरस्कार करें।


अपने भारत की अखण्डता। 


और अपने भारत की गुणवत्ता का।


चलो हम सब एकत्रित हो। 


मिलजुल कर महिमा गान करें।


*अजय कुमार द्विवेदी, दिल्ली मो8800677255












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