*अरविन्द शर्मा*
लाड़ से मुझको गले लगाए, घर पर आई मेरी माँ,
ईश्वर की प्यारी दुनिया में, मुझको लाई मेरी माँ।
दूर से कितनी प्यारी लगती, सपने बुनती मेरी माँ,
मेरी राह के काँटों को, आँखों से चुनती मेरी माँ।
सारे घर को चैन नींद की, देकर सोती मेरी माँ,
सभी बलाओं को निपटाने, आगे होती मेरी माँ।
वक्त ने बदले रिश्ते सारे, पर न बदली मेरी माँ,
ईश्वर शायद वैसा ही है, जैसी लगती मेरी माँ।
हर माँ का करना सम्मान, समझाती है मेरी माँ,
पुण्य नहीं है इससे बढ़कर, बतलाती है मेरी माँ।
हर धर्म में माँ है पहले, ध्यान धराती मेरी माँ,
सबकी माँ प्यारी होती है, यही बताती मेरी माँ।
*अरविन्द शर्मा,बी एम - 49, नेहरू नगर, भोपाल मो 9669333020
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