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(कविता)











*सुरेश शर्मा*


उन  खुरदरी राहों  की ,


तेरी  नंगी  दबे  पैरो  की ;


पद्चाप ।


आज  भी  मुझे  सताती है ।


तेरी  रेशमी  मुलायम  पैरों मे, 


पाजेब  की  खनखनाहट ;


आज  भी  मुझे  तड़पाती  है ।


वो  नींद  से  बोझिल, 


मेरे कानो मे तेरा  ,


दबे पांव से !


मधुर स्वर  मे  आकर  यह  कहना-


"लो मै आ गई  ! "


आज  भी: सुनने  को  तरसती  है ।


तेरी  कंधे  पर  अपने  हाथों से, 


तेरी रेशमी सुनहरे  बालो से  खेलना, 


आज  भी  मुझे  याद  है ।


वक्त  ने  करवट  बदल  लिया, 


जमाने  ने  भी  अपना  रंग  बदल  लिया! ;


तू भी अब  पहले - सी कहां  रही ।


मै  आज  भी  वही  खुश्बूरहित ,


कागज  का  फूल  बना  रहा !


मुझे  आज  भी तुम्हारा  इन्तजार  करना,


अच्छा  लगता  है ।


क्योंकि  ;


आज  भी  मुझे  सबकुछ  याद  है ।


हा ! आज  भी  मुझे  सबकुछ  याद  है ।


*सुरेश शर्मा नूनमाटी ,गुवाहाटी,आसाम ,मो.881103347












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