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कभी तुम्हारा तीर (दोहे)











*बजरंग श्री सहाय 'रवि'*


रहो अटल निज लक्ष्य पर, रख कर साहस धीर। 
भेदेगा आकाश को, कभी तुम्हारा तीर।।

दुख हो तो भी सुकृति के, सदा खिलाओ फूल ।
नागफनी को भी कभी, चुभते अपने शूल।। 

उनका कैसा जागरण, कैसा ज्ञान सुयोग ।
नहीं नींद में किन्तु हैं , पड़े खाट पर लोग ।।

हार हार कर भी नहीं, हारेगा जो वीर ।
अपने हाथों लिखेगा, वह अपनी तकदीर ।।

उतरेगा जो सिन्धु में , वह पाएगा रत्न ।
जो बैठेगा तीर पर, उसका व्यर्थ प्रयत्न ।।



*बजरंग श्री सहाय 'रवि',आजमगढ़,मो.9450805606












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