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जिला कलेक्टर ने लगाया महालाया और महामाया देवी को मदिरा का भोग

उज्जैन में 27 किमी तक देवी और भैरव को मदिरा की धार



उज्जैन।  शारदीय नवरात्रि की अष्टमी पर रविवार को जिला कलेक्टर शशांक दूबे ने चौबीस खंबा स्थित महामाया और महालाया देवी का पूजन कर नगर पूजा उत्सव प्रारंभ किया। नगर पूजा में शहर के 40 देवी और भैरव मंदिरों तक (27 किमी) मदिरा की धार डाली जाती है। पूरे रास्ते में घुघरी का भोग बिखेरा जाता है। हर देवी मंदिर पर शृंगार सामग्री चढ़ा कर पूजा की जाती है। भैरव मंदिरों में भी पूजा अर्पित होती है। मदिरा की धार के लिए आबकारी विभाग से 40 लीटर मदिरा ली गई है। इस पूजा के माध्यम से आद्य शक्ति से नगर की खुशहाली बनाए रखने और विपत्तियों से बचाव की प्रार्थना की गई।


नगर पूजा यात्रा के दौरान तांबे घड़े में 40 लीटर मदिरा भर कर कोटवाल चलता है। घड़े के पैंदे से मदिरा की धार पूरे 27 किमी मार्ग तक बिखरती रहती है। जुलूस में ढोल के साथ ध्वज, प्रसाद, शृंगार सामग्री और पूजन सामग्री लेकर शासकीय कर्मचारी चलते है। मंदिर दर मंदिर पूजा करते हुए जुलूस शाम 7 बजे अंकपात मार्ग स्थित हांडीफोड़ भैरव मंदिर पर समाप्त होगा जहां बची हुई सभी सामग्री समर्पित कर उत्सव का समापन किया जाएगा। देवी और भैरव के अलावा पुरुषोत्तम सागर के पास स्थित हनुमान मंदिर में भी पूजा की जाएगी।


कहा जाता है कि सम्राट विक्रमादित्य ने नगर पूजा की परंपरा शुरू की थी। इसके बाद यह परंपरा सभी राजवंशों ने निभाई। अब शासन द्वारा इस उत्सव का आयोजन किया जाता है। लोक गाथा के अनुसार उज्जैन में पहले एक ही दिन का राजा होता था। दिन पूरा होते ही देवी शक्तियां राजा का भोग ले लेती थी। दूसरे दिन नया राजा बनाया जाता था। एक बार गरीब माता-पिता के इकलौते पुत्र का राजा बनने का क्रम आ गया। सम्राट विक्रमादित्य उनके यहां अतिथि थे। जब सम्राट को इसकी जानकारी हुई तो उन्होंने माता-पिता को आश्वस्त किया कि उनके पुत्र की जगह वे जाएंगे। सम्राट ने रात होने के पहले ही जिन रास्तों से देवी शक्तियां राजमहल तक आती थीं वहां देवियों के पसंद के भोजन, शृंगार, वस्त्र, इत्र आदि रखवा दिए। राजा के पलंग पर मिठाई का पुतला बना कर लेटा दिया। रास्ते में अपने पसंद के भोजन और अन्य सामग्रियों के ग्रहण करती हुई देवी शक्तियां राजमहल पहुंची। सभी प्रसन्न थी। एक देवी इस पर भी संतुष्ट नहीं थी। उसने पलंग पर लेटे मिठाई के पुतले का आधा भाग खींच लिया। इस पर अन्य देवियों ने उन्हें भूखी माता नाम दिया और शहर के बाहर स्थापित होने का कहा। प्रसन्न देवियों ने राजा विक्रमादित्य को वरदान दिया कि नगर में अब कोई अनिष्ट नहीं होगा। तभी से विक्रमादित्य ने नगर पूजा उत्सव शुरू कराया। हर साल अष्टमी को देवियों व भैरवों को भोग और शृंगार अर्पित किया जाता है। शासन से इस उत्सव के लिए 300 रुपए स्वीकृत हैं। लेकिन इस उत्सव पर करीब 20 से 25 हजार रुपए खर्च होता है जो भक्त और कर्मचारी मिल कर जुटाते हैं।


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