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जीवन में हर समय प्रेम का संगीत हो (लेख)







*सुनील कुमार माथुर*


प्रार्थना में वह शक्ति है जो हर कार्य को सरल से सरल बना देती है । परमात्मा तो सबके पालनहार है तो फिर वे हमें परेशान व दुःखी क्यों करेंगे । वरन वे तो हमें सही और सत्य का ज्ञान कराते हैं । अपने लिए किया गया कार्य दुःख का कारण हो सकता है और दूसरों को सुख देने का कार्य आनंद का कार्य हो जाता है । सुख की कामना ही दुःख का कारण है जीवन में हर समय प्रेम का संगीत होना चाहिए । चूंकि इससे जीवन आनंदमय होता है एवं विपरित परिस्थितियों का सामना करने की भी शक्ति मिलती है । 


           कठोर परिश्रम से कमाया गया पैसा ही सत्कार्य में लगाना चाहिए । चूंकि परिश्रम से कमाया गया पैसा ही हमें सत्य के मार्ग पर ले जाता है । दृढ निश्चय के साथ व्यक्ति अगर भगवत पथ पर निकले तो उसे भगवत प्राप्ति अवश्य ही होंगी । परमात्मा को ढूंढने की जरूरत नहीं है । वे तो कण कण में विराजमान है । जरूरत है तो दिव्य दृष्टि की जो उन्हें हर जगह देख सकें । मानव का चरित्र अगर श्रेष्ठ है तो सब कुछ श्रेष्ठ है । अगर चरित्र ही खराब हो तो सब कुछ खराब माना जाता है । गया चरित्र वापस नहीं आता है गया धन मेहनत मजदूरी करके पुनः कमाया जा सकता है । अतः इंसान को पूरी ईमानदारी व निष्ठा के साथ कार्य करना चाहिए व उसे ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिए जिससे उसकी प्रतिष्ठा पर दाग लगें ।


          बेकार की गपशप करने के बजाय ईश्वर के नाम का स्मरण करने से मन को अपार शान्ति मिलती है । प्रभु का स्मरण ही हमारे अन्त समय में काम आयेगा । जब हमारे पर विपत्ति आती है उस समय पर हम परमात्मा को याद करते हैं और वे ही हमारे दुखों का निवारण करते हैं तो फिर सुख में प्रभु के नाम का स्मरण क्यों नहीं करते । प्रभु के नाम का स्मरण करने से मन को अपार शान्ति मिलती है । इस नश्वर संसार में व्यक्ति एक यात्री के रूप में आया है और यह कब तक चलेगा यह भी किसी को पता नहीं । चूंकि यह संसार तो एक सराय के समान है जहां यात्री आता है और चला जाता है वह यहां पर स्थायी रूप से निवास नहीं करता है । जब परमात्मा ने हमें इस संसार में रहने का समय दिया है और मानव जीवन दिया है तो फिर हम क्यों अपना समय बर्बाद कर रहे है । यह समय किसी परोपकारी कार्य में लगाये तो बेहतर होगा । सुबह शाम ईश्वर का स्मरण करे, भजन-कीर्तन करें, सत्संग करें । इससे प्रेम, स्नेह , सहनशीलता , नम्रता जैसे दिव्य गुणों का संचार होता है ।


           अगर हम में दया, प्रेम, करूणा, स्नेह, त्याग और बलिदान की भावना है । दूसरों के दुख दूर करने की क्षमता है तो उस दुखी व्यक्ति की अवश्य ही मदद करनी चाहिए । हम जैसा व्यवहार अपने प्रति चाहते है वैसा ही व्यवहार आप दूसरे के साथ करें सफलता अवश्य ही मिलेगी । यही मानवता है । अच्छे संस्कारों से ही धरती स्वर्ग बन सकती है । धरती पर स्वर्ग का वातावरण स्थापित करने के लिए दया, प्रेम, स्नेह, करूणा, ममता व वात्सल्य जैसी भावनाएं आवश्यक है । संतो और महापुरुषों ने सदैव प्यार व मोहब्बत का संदेश दिया है । हमें दूसरों की बुराइयों को नहीं अपितु उनके अच्छे गुणों को ही स्वीकार करना चाहिए ।


             अंहकार को छोड़ कर सद्गुगुरू की शरण में जाना चाहिए अन्यथा हीरे जैसा मानव जीवन व्यर्थ चला जायेगा । प्रेम की दौलत बांटते जाइये । इसे आप जीतना दूसरों में बांटेंगे यह उतनी ही ज्यादा बढती जायेगी । सदैव परोपकार के कार्य करें । जीवन को मायाजाल में बर्बाद न करें । सदैव सत्य के मार्ग पर चलें । सहनशीलता से ही आध्यात्मिकता मजबूत होती है । अतः मानवीय मूल्यों को जीवन में आत्मसात करें । आज नैतिक मूल्यों का जो हास हुआ है उसके पीछे मूल कारण यही है कि आज इंसान ने इंसानियत को ही भूला दिया है ।


*सुनील कुमार माथुर ,39/4 पी डब्ल्यू डी कालोनी जोधपुर 34001 , राजस्थान 








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