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हिंसा का नामो निशान सारे जग से मिटाएँ (कविता)





*डॉ. अनिता सिंह* 


चलो फिर अहिंसा के गीत गुनगुनाएँ। 


हिंसा को भूल अहिंसा के पथ में कदम बढ़ाएँ। 


जगायी अहिंसा की अलख जिन्होंने 


चलो आज फिर से बापू को ढूँढ लाएँ। 


स्वार्थ नहीं जो परमार्थ हेतु आया धरा पर


चलो ऐसे महामानव को शीश झुकाएँ। 


अहिंसा के दम पर देश को दास्ता से मुक्त कराया 


उनके पावन पद चिह्नों पर कदम हम बढ़ाएँ। 


हिंसा ही इंसा को इंसा का दुश्मन बनाता 


अहिंसा के दम पर ये दुश्मनी मिटाएँ। 


नफरत की आँधी बह रही हर शहर में 


अनुराग की रीत चलो सबको बताएँ। 


जहाँ शांति शीतलता मानवता की बयार हो 


चलो ऐसा आज चमन हम बनाएँ। 


नया खून ,नयी उमंगे, गंगा यमुना सी हैं तरंगे


अब इनके अंदर अहिंसा का तूफान जगाएँ। 


हिंसा है विनाश, नही इससे किसी का विकास


अहिंसा का भवन चलो गगनचुंबी बनाएँ। 


अहिंसा में ही छिपी है भावना मानवता की 


हिंसा को छोड़ मानवता की अलख हम जगाएँ। 


चल हिंसा के पथ पर जो भूले राह अहिंसा की 


उन्हें पुनः अहिंसा के पथ पर हम लाएँ ।


अहिंसा का मूल मंत्र सारे जग में फैलाएँ


हिंसा का नामो निशान सारे जग से मिटाएँ। 


*डॉ. अनिता सिंह ,बिलासपुर (छत्तीसगढ़),मो 9907901875



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