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दीवाली विशेष-जुआ खेलना आत्मघाती होता है











*डॉ.नीलम खरे*
कुछ लोगों का मानना है कि जुआ खेलना एक किस्म का मनोरंजन है, तो कुछ लोगों का कहना है कि यह एक बुरी बला है।वास्तव में जुआ आत्मघात का ही एक प्रकार है ।
कई लोगों को लगता है कि अगर जुआ कानूनी तौर पर खेला जा रहा हो, तो इसमें कोई बुराई नहीं है। सरकारों की निगरानी में खेले जानेवाले जुए से जो मुनाफा होता है, जैसे लॉटरियों के ज़रिए होनेवाले मुनाफे का सरकार जनता के फायदे के लिए ही तो इस्तेमाल करती है।पर ,यह ठीक नहीं माना जा सकता ।जुआ खेलना दरअसल एक प्रकार का लालच होता है ,और लालच को हमेशा बुरा माना जाता है । के बारे में साफ-साफ नहीं बताया गया है। लेकिन इसमें ऐसे बहुत-से सिद्धांत दिए गए हैं, जिनसे हम इस बारे में परमेश्वर का नज़रिया जान सकते हैं।


जुआ खेलनेवाले हर हाल में जीतना चाहते हैं, फिर चाहे इसकी वजह से किसी का भी नुकसान क्यों न हो। लेकिन बाइबल में साफ-साफ लिखा है कि “हर तरह के लालच से खुद को बचाए रखो।” लालच ही एक इंसान को जुआ खेलने का बढ़ावा देता है। कैसीनो या जुआखाने लोगों से वादा करते हैं कि वे जीतने पर बड़ी रकम देंगे। वे लोगों को यकीन दिलाते हैं कि वे आसानी से जीत जाएँगे, क्योंकि वे जानते हैं कि लालच में आकर वे जुए में ढेर सारा पैसा लगाने के लिए तैयार हो जाएँगे। जुआ खेलने से एक इंसान इस कदर लालची बन जाता है कि उसे लगता है कि वह रातों-रात अमीर बन जाएगा।
जुआ खेलनेवाला इंसान सिर्फ अपने बारे में ही सोचता है। वह तभी जीत सकता है, जब दूसरे जुए में हार जाएँ। लेकिन पवित्र शास्त्र बाइबिल में लिखा है कि एक इंसान “अपना ही फायदा न सोचे, बल्कि उन बातों की खोज में लगा रहे जिनसे दूसरों का फायदा हो।”  और पवित्र शास्त्र में परमेश्वर ने यह आज्ञा भी दी है कि हम दूसरों की चीज़ों का लालच न करें। एक जुआरी पर जीतने का जुनून सवार हो जाता है, तो दरअसल वह चाहता है कि दूसरे जुए में अपना पैसा हार जाएँ, ताकि वह जीत सके।
जुआ खेलनेवाले सोचते हैं अगर किस्मत साथ दे, तो वे दौलतमंद बन सकते हैं। लेकिन पवित्र शास्त्र ऐसा करने से हमें मना करता है। ध्यान दीजिए कि जब पुराने ज़माने में कुछ लोगों ने परमेश्वर पर विश्वास करना छोड़ दिया और किस्मत के देवता को पूजने लगे, तो परमेश्वर को कैसा लगा? परमेश्वर ने उनसे कहा, “जो मुझे बुरा लगता है वही तुम ने नित किया, और जिस से मैं अप्रसन्न होता हूँ, उसी को तुम ने अपनाया।”
वास्तव में,यह सच है कि दुनिया के कुछ हिस्सों में कानूनी तौर पर खेले जा रहे जुए से जो पैसा आता है, उसे शिक्षा, देश की तरक्की और जनता के फायदे के लिए इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन चाहे यह पैसा कितने भी अच्छे कामों के लिए क्यों न लगाया जा रहा हो, इससे एक बात नहीं झुठलायी जा सकती। वह क्या? यही कि यह पैसा जुआ खेलने से आ रहा है, जो लालच और स्वार्थ को बढ़ावा देता है और लोगों को बैठे-बैठे अमीर बनने का ख्वाब दिखाता है।
जो लोग हर हाल में अमीर बनना चाहते हैं, वे फंदे में फँस जाते हैं और मूर्खता से भरी और खतरनाक ख्वाहिशों में पड़ जाते हैं जो इंसान को विनाश और बरबादी की खाई में धकेल देती हैं। जुआ खेलने की सबसे बड़ी वजह है लालच और लालच सबसे बड़ी बुरी बला है ।


बाइबल इसका ज़िक्र ऐसे कामों के साथ करती है, जिनसे हमें कोसों दूर रहना चाहिए ।जुआ खेलने का मकसद होता है आसानी से पैसा कमाना, इसलिए यह एक इंसान के मन में पैसे का प्यार पैदा करता है। और पवित्र किताब बाइबल कहती है कि “पैसे का प्यार तरह-तरह की बुराइयों की जड़ है।” पैसा कमाने की चाहत एक इंसान पर इस कदरहावी हो सकती है कि वह चिंता में डूब सकता है और परमेश्वर पर से उसका भरोसा उठ सकता है। जिन पर पैसा कमाने की धुन सवार हो जाती है, उनके बारे में पवित्र शास्त्र बताता है कि वे “कई तरह की दुःख-तकलीफों से खुद को छलनी” कर लेते हैं ।" पांडवों के हश्र से तो हम सब परिचित हैं ही ।
जो इंसान लालच करता है, उसका पेट कभी नहीं भरता, फिर चाहे उसके पास कितना भी पैसा क्यों न हो। यह एक इंसान की खुशी छीन लेता है। पवित्र शास्त्र बताता है कि “जो रुपये से प्रीति रखता है वह रुपये से तृप्त न होगा; और न जो बहुत धन से प्रीति रखता है, वह निरन्तर लाभ से तृप्त न होगा।”
दुनिया-भर में ऐसे लाखों लोग हैं, जो जुआ खेलने के लिए लुभाए गए और अब उन्हें इसकी बुरी लत लग चुकी है। एक अखबार के मुताबिक भारत में ही एक जुआखाने के मैनेजर ने कहा कि वहाँ आनेवाले लोगों में से 70 प्रतिशत लोगों को जुआ खेलने की लत लग चुकी है।एक कहावत है, “जो भाग पहले उतावली से मिलता है, अन्त में उस पर आशीष नहीं होती।” (नीतिवचन ) जुआ खेलने की लत की वजह से लोग कर्ज़ में डूब गए हैं, यहाँ तक कि उनका दिवाला पिट गया है, और कई लोगों की नौकरी छूट गयी है, शादी टूट गयी है और उनके दोस्तों ने उनका साथ छोड़ दिया है। लेकिन अगर एक इंसान बाइबल में दिए सिद्धांतों को लागू करे, तो उसे जुआ खेलने से होनेवाले ये बुरे अंजाम नहीं भुगतने पड़ेंगे। 
जो लोग हर हाल में अमीर बनना चाहते हैं, वे भी जुआ की भूलभुलैया में फंसकर मूर्खता से भरी खतरनाक डगर पर आगे बढ़कर अपना सब कुछ तबाह कर लेते हैं। इसे दीवाली से नेग-शगुन से जोड़कर उचित मानना भी पूरी तरह से अनुचित है ।


*डॉ.नीलम खरे,मंडला,मप्र,मो.9425484382












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