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औरत सम्मान (कविता)







*सौम्या दुआ*


आज की द्रोपती सीता हूं मैं


इम्तिहान अब नहीं मुझको देने 


चीर के रख दूं सीना उनका 


वार करें जो मुझ पर पैने


स्वयंभू अब होना नहीं


स्वयंभू करवाना है


ना झूलूंगी फांसी के फंदे


दुष्टों को अब झुलवाना है 


एक दिन आएगा ऐसा 


आदमी घबराएगा 


हाथ क्या लगाएगा मुझको 


वह आंख भी झुकाएगा 


वैसे मेरा आजाद होना 


मर्द को कहां भाएगा


जब तलक सम्मान देगा 


सम्मान मुझसे वो पाएगा


कंधे से कंधा मिलाना


कंधा मिलाने तो दो 


बोझ बस बढ़ाया मेरा 


मेरा बोझ तुम भी तो लो


बराबरी की बात कहकर


सुकून तू इतना ना उठा 


दिल पर अपने हाथ रख 


क्या सुकून तूने है दिया


वैसे मेरा आजाद होना 


तुझको कहां भाएगा


जब तलक सम्मान देगा


मुझसे भी तू पाएगा


*सौम्या दुआ, हल्द्वानी नैनीताल मो.7535972240








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