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आसमान के तारें (कविता)







*कुमार संदीप*


आसमान के तारें


हाँ जब देखता हूँ आसमां में


टिमटिमाते हुये तारों को,


ऐसा लगता है कि ये तारें


सपरिवार स्नेह और प्रेम से


रहते हैं मिलजुलकर एक साथ।


 


आसमान के तारें


हाँ जब देखता हूँ आसमां में,


जुगनू की तरह तारों को चमकते


ऐसा लगता है कि ये तारें


एक साथ हँसते हैं मुस्कुराते हैं,


तारों की चमक आँखों को देती है सुकून।


 


आसमान के तारें


हाँ जब देखता हूँ आसमां में,


तारों को कुछ समय के लिए ओझल होते


ऐसा लगता है कि ये तारें


भी क्रंदन करते हैं दीन दुखी के दुःख देखकर,


ये तारें देखते हैं आसमां से इंसानों के कुकर्मों को।


 


आसमान के तारें


हाँ जब देखता हूँ आसमां में


असंख्य तारें,


ऐसा लगता है कि ये तारें


सभी एक जैसे ही हैं,


इन तारों में इंसानों की तरह


न तो रंग का भेदभाव है, न ही धर्म,जाती का बंधन।


*कुमार संदीप,ग्राम-सिमरा,जिला-मुजफ्फरपुर,(बिहार),मो.7562017165








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